भेंटेउ तनय सुमित्राँ: Difference between revisions
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रामहि मिलत कैकई हृदयँ बहुत सकुचानि॥6 क॥ | रामहि मिलत कैकई हृदयँ बहुत सकुचानि॥6 क॥ |
Latest revision as of 04:45, 5 June 2016
भेंटेउ तनय सुमित्राँ
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
भेंटेउ तनय सुमित्राँ राम चरन रति जानि। |
- भावार्थ
सुमित्राजी अपने पुत्र लक्ष्मण जी की श्री राम जी के चरणों में प्रीति जानकर उनसे मिलीं। श्री रामजी से मिलते समय कैकेयी जी हृदय में बहुत सकुचाईं॥6 (क)॥
left|30px|link=जनु धेनु बालक बच्छ तजि|पीछे जाएँ | भेंटेउ तनय सुमित्राँ | right|30px|link=लछिमन सब मातन्ह मिलि|आगे जाएँ |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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