समुझि सुमित्राँ राम: Difference between revisions
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नृप सनेहु लखि धुनेउ सिरु पापिनि दीन्ह कुदाउ॥73॥</poem> | नृप सनेहु लखि धुनेउ सिरु पापिनि दीन्ह कुदाउ॥73॥</poem> | ||
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Revision as of 13:03, 10 June 2016
समुझि सुमित्राँ राम
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
समुझि सुमित्राँ राम सिय रूपु सुसीलु सुभाउ। |
- भावार्थ
सुमित्राजी ने श्री रामजी और श्री सीताजी के रूप, सुंदर शील और स्वभाव को समझकर और उन पर राजा का प्रेम देखकर अपना सिर धुना (पीटा) और कहा कि पापिनी कैकेयी ने बुरी तरह घात लगाया॥73॥
left|30px|link=लखन लखेउ भा अनरथ आजू|पीछे जाएँ | समुझि सुमित्राँ राम | right|30px|link=धीरजु धरेउ कुअवसर जानी|आगे जाएँ |
दोहा - मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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