बाजहिं ढोल देहिं सब तारी: Difference between revisions
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ढोल बजते हैं, सब लोग तालियाँ पीटते हैं। | ढोल बजते हैं, सब लोग तालियाँ पीटते हैं। हनुमान जी को नगर में फिराकर, फिर पूँछ में आग लगा दी। अग्नि को जलते हुए देखकर हनुमान जी तुरंत ही बहुत छोटे रूप में हो गए॥4॥ | ||
Latest revision as of 12:07, 16 June 2016
बाजहिं ढोल देहिं सब तारी
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, दोहा, छंद और सोरठा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | सुन्दरकाण्ड |
बाजहिं ढोल देहिं सब तारी। नगर फेरि पुनि पूँछ प्रजारी॥ |
- भावार्थ
ढोल बजते हैं, सब लोग तालियाँ पीटते हैं। हनुमान जी को नगर में फिराकर, फिर पूँछ में आग लगा दी। अग्नि को जलते हुए देखकर हनुमान जी तुरंत ही बहुत छोटे रूप में हो गए॥4॥
left|30px|link=रहा न नगर बसन घृत तेला|पीछे जाएँ | बाजहिं ढोल देहिं सब तारी | right|30px|link=निबुकि चढ़ेउ कप कनक अटारीं|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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