पाइ नयन फलु होहिं सुखारी: Difference between revisions
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सजल बिलोचन पुलक सरीरा। सब भए मगन देखि दोउ बीरा॥2॥</poem> | सजल बिलोचन पुलक सरीरा। सब भए मगन देखि दोउ बीरा॥2॥</poem> | ||
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Latest revision as of 05:01, 21 June 2016
पाइ नयन फलु होहिं सुखारी
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
राम लखन सिय रूप निहारी। पाइ नयन फलु होहिं सुखारी॥ |
- भावार्थ
श्री राम, लक्ष्मण और सीताजी का रूप देखकर, नेत्रों का (परम) फल पाकर वे सुखी होते हैं। दोनों भाइयों को देखकर सब प्रेमानन्द में मग्न हो गए। उनके नेत्रों में जल भर आया और शरीर पुलकित हो गए॥2॥
left|30px|link=सीता लखन सहित रघुराई|पीछे जाएँ | पाइ नयन फलु होहिं सुखारी | right|30px|link=बरनि न जाइ दसा तिन्ह केरी|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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