आगें रामु लखनु बने पाछें: Difference between revisions
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उभय बीच सिय सोहति कैसें। ब्रह्म जीव बिच माया जैसें॥1॥</poem> | उभय बीच सिय सोहति कैसें। ब्रह्म जीव बिच माया जैसें॥1॥</poem> |
Latest revision as of 04:18, 24 June 2016
आगें रामु लखनु बने पाछें
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
आगें रामु लखनु बने पाछें। तापस बेष बिराजत काछें॥ |
- भावार्थ
आगे श्री रामजी हैं, पीछे लक्ष्मणजी सुशोभित हैं। तपस्वियों के वेष बनाए दोनों बड़ी ही शोभा पा रहे हैं। दोनों के बीच में सीताजी कैसी सुशोभित हो रही हैं, जैसे ब्रह्म और जीव के बीच में माया!॥1॥
left|30px|link=एहि बिधि रघुकुल कमल|पीछे जाएँ | आगें रामु लखनु बने पाछें | right|30px|link=बहुरि कहउँ छबि जसि मन बसई|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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