संत बिसुद्ध मिलहिं परि तेही: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
No edit summary |
||
Line 34: | Line 34: | ||
<poem> | <poem> | ||
;चौपाई | ;चौपाई | ||
संत बिसुद्ध मिलहिं परि तेही। चितवहिं राम कृपा करि जेही॥ | |||
राम कपाँ तव दरसन भयऊ। तव प्रसाद सब संसय गयऊ॥4॥ | |||
</poem> | </poem> | ||
{{poemclose}} | {{poemclose}} | ||
;भावार्थ | ;भावार्थ | ||
[[ | शुद्ध (सच्चे) संत उसी को मिलते हैं, जिसे [[राम|श्री राम जी]] कृपा करके देखते हैं। श्री रामजी की कृपा से मुझे आपके दर्शन हुए और आपकी कृपा से मेरा संदेह चला गया॥4॥ | ||
{{लेख क्रम4| पिछला=सुनतेउँ किमि हरि कथा सुहाई |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=सुनि बिहंगपति बानी}} | {{लेख क्रम4| पिछला=सुनतेउँ किमि हरि कथा सुहाई |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=सुनि बिहंगपति बानी}} | ||
'''चौपाई'''- मात्रिक सम [[छन्द]] का भेद है। [[प्राकृत]] तथा [[अपभ्रंश]] के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित [[हिन्दी]] का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। [[तुलसीदास|गोस्वामी तुलसीदास]] ने [[रामचरितमानस]] में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है। | '''चौपाई'''- मात्रिक सम [[छन्द]] का भेद है। [[प्राकृत]] तथा [[अपभ्रंश]] के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित [[हिन्दी]] का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। [[तुलसीदास|गोस्वामी तुलसीदास]] ने [[रामचरितमानस]] में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है। | ||
Latest revision as of 10:42, 29 June 2016
संत बिसुद्ध मिलहिं परि तेही
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
सभी (7) काण्ड क्रमश: | बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड, उत्तरकाण्ड |
संत बिसुद्ध मिलहिं परि तेही। चितवहिं राम कृपा करि जेही॥ |
- भावार्थ
शुद्ध (सच्चे) संत उसी को मिलते हैं, जिसे श्री राम जी कृपा करके देखते हैं। श्री रामजी की कृपा से मुझे आपके दर्शन हुए और आपकी कृपा से मेरा संदेह चला गया॥4॥
left|30px|link=सुनतेउँ किमि हरि कथा सुहाई|पीछे जाएँ | संत बिसुद्ध मिलहिं परि तेही | right|30px|link=सुनि बिहंगपति बानी|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-506
संबंधित लेख