हानि कि जग एहि सम किछु भाई: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
 
Line 33: Line 33:
{{poemopen}}
{{poemopen}}
<poem>
<poem>
;दोहा
;चौपाई
हानि कि जग एहि सम किछु भाई। भजिअ न रामहि नर तनु पाई॥
हानि कि जग एहि सम किछु भाई। भजिअ न रामहि नर तनु पाई॥
अघ कि पिसुनता सम कछु आना। धर्म कि दया सरिस हरिजाना॥5॥
अघ कि पिसुनता सम कछु आना। धर्म कि दया सरिस हरिजाना॥5॥
Line 41: Line 41:
हे भाई! जगत में क्या इसके समान दूसरी भी कोई हानि है कि मनुष्य का शरीर पाकर भी [[राम|श्री राम जी]] का भजन न किया जाए? चुगलखोरी के समान क्या कोई दूसरा पाप है? और हे [[गरुड़|गरुड़ जी]]! दया के समान क्या कोई दूसरा धर्म है?॥5॥  
हे भाई! जगत में क्या इसके समान दूसरी भी कोई हानि है कि मनुष्य का शरीर पाकर भी [[राम|श्री राम जी]] का भजन न किया जाए? चुगलखोरी के समान क्या कोई दूसरा पाप है? और हे [[गरुड़|गरुड़ जी]]! दया के समान क्या कोई दूसरा धर्म है?॥5॥  
{{लेख क्रम4| पिछला=पावन जस कि पुन्य बिनु होई |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=एहि बिधि अमिति जुगुति मन गुनऊँ}}
{{लेख क्रम4| पिछला=पावन जस कि पुन्य बिनु होई |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=एहि बिधि अमिति जुगुति मन गुनऊँ}}
'''दोहा'''- मात्रिक अर्द्धसम [[छंद]] है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
'''चौपाई'''- मात्रिक सम [[छन्द]] का भेद है। [[प्राकृत]] तथा [[अपभ्रंश]] के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित [[हिन्दी]] का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। [[तुलसीदास|गोस्वामी तुलसीदास]] ने [[रामचरितमानस]] में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
 





Latest revision as of 04:38, 14 July 2016

हानि कि जग एहि सम किछु भाई
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड उत्तरकाण्ड
सभी (7) काण्ड क्रमश: बालकाण्ड‎, अयोध्या काण्ड‎, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड‎, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड‎, उत्तरकाण्ड
चौपाई

हानि कि जग एहि सम किछु भाई। भजिअ न रामहि नर तनु पाई॥
अघ कि पिसुनता सम कछु आना। धर्म कि दया सरिस हरिजाना॥5॥

भावार्थ

हे भाई! जगत में क्या इसके समान दूसरी भी कोई हानि है कि मनुष्य का शरीर पाकर भी श्री राम जी का भजन न किया जाए? चुगलखोरी के समान क्या कोई दूसरा पाप है? और हे गरुड़ जी! दया के समान क्या कोई दूसरा धर्म है?॥5॥


left|30px|link=पावन जस कि पुन्य बिनु होई|पीछे जाएँ हानि कि जग एहि सम किछु भाई right|30px|link=एहि बिधि अमिति जुगुति मन गुनऊँ|आगे जाएँ

चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-530

संबंधित लेख