पोइक्‍कल कुदीराई अट्टम नृत्य: Difference between revisions

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पुईकल कुडीराई अट्टम [[तमिलनाडु]] का नकली घोड़ों के साथ किया जाने वाला [[लोक नृत्य]] है, जहाँ नृत्‍य करने वाला व्‍यक्ति अपनी कमर की ऊँचाई पर घोड़े के शरीर की आकृति का एक नकली पुतला पहनता है। इसमें हल्‍की सामग्री से बने हुए पुतले होते हैं और इसके नीचे लगे हुए कपड़े नृत्‍य करने वाले व्‍यक्ति के पैरों को ढक लेते हैं। तब नृत्‍य करने वाला व्‍यक्ति नकली पैरों पर चलता है जो घोड़े की पद चाप के समान दिखाई देते हैं। नृत्‍य करने वाले व्‍यक्ति के हाथ में तलवार या चाबूक होता है। इस लोक नृत्‍य को करने के लिए काफी प्रशिक्षण और कौशल की जरूरत होती है। इस नृत्‍य में बैंड संगीत या नियंदी मेलम का उपयोग किया जाता है। यह नृत्‍य पुराणिक रूप से अयन्‍नार की पूजा में समर्पित है और आम तौर पर इसे तमिलनाडु के तंजौर के आस पास किया जाता है।
पुईकल कुडीराई अट्टम [[तमिलनाडु]] का नकली घोड़ों के साथ किया जाने वाला [[लोक नृत्य]] है, जहाँ नृत्‍य करने वाला व्‍यक्ति अपनी कमर की ऊँचाई पर घोड़े के शरीर की आकृति का एक नकली पुतला पहनता है। इसमें हल्‍की सामग्री से बने हुए पुतले होते हैं और इसके नीचे लगे हुए कपड़े नृत्‍य करने वाले व्‍यक्ति के पैरों को ढक लेते हैं। तब नृत्‍य करने वाला व्‍यक्ति नकली पैरों पर चलता है जो घोड़े की पद चाप के समान दिखाई देते हैं। नृत्‍य करने वाले व्‍यक्ति के हाथ में तलवार या चाबूक होता है। इस लोक नृत्‍य को करने के लिए काफी प्रशिक्षण और कौशल की ज़रूरत होती है। इस नृत्‍य में बैंड संगीत या नियंदी मेलम का उपयोग किया जाता है। यह नृत्‍य पुराणिक रूप से अयन्‍नार की पूजा में समर्पित है और आम तौर पर इसे तमिलनाडु के तंजौर के आस पास किया जाता है।


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Revision as of 12:35, 25 August 2010

पुईकल कुडीराई अट्टम तमिलनाडु का नकली घोड़ों के साथ किया जाने वाला लोक नृत्य है, जहाँ नृत्‍य करने वाला व्‍यक्ति अपनी कमर की ऊँचाई पर घोड़े के शरीर की आकृति का एक नकली पुतला पहनता है। इसमें हल्‍की सामग्री से बने हुए पुतले होते हैं और इसके नीचे लगे हुए कपड़े नृत्‍य करने वाले व्‍यक्ति के पैरों को ढक लेते हैं। तब नृत्‍य करने वाला व्‍यक्ति नकली पैरों पर चलता है जो घोड़े की पद चाप के समान दिखाई देते हैं। नृत्‍य करने वाले व्‍यक्ति के हाथ में तलवार या चाबूक होता है। इस लोक नृत्‍य को करने के लिए काफी प्रशिक्षण और कौशल की ज़रूरत होती है। इस नृत्‍य में बैंड संगीत या नियंदी मेलम का उपयोग किया जाता है। यह नृत्‍य पुराणिक रूप से अयन्‍नार की पूजा में समर्पित है और आम तौर पर इसे तमिलनाडु के तंजौर के आस पास किया जाता है।

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