चरफराहिं मग चलहिं न घोरे: Difference between revisions
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चरफराहिं मग चलहिं न घोरे। बन मृग मनहुँ आनि रथ जोरे॥ | चरफराहिं मग चलहिं न घोरे। बन मृग मनहुँ आनि रथ जोरे॥ | ||
अढ़ुकि परहिं फिरि हेरहिं पीछें। राम बियोगि बिकल | अढ़ुकि परहिं फिरि हेरहिं पीछें। राम बियोगि बिकल दु:ख तीछें॥3॥</poem> | ||
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Latest revision as of 14:01, 2 June 2017
चरफराहिं मग चलहिं न घोरे
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
सभी (7) काण्ड क्रमश: | बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड, उत्तरकाण्ड |
चरफराहिं मग चलहिं न घोरे। बन मृग मनहुँ आनि रथ जोरे॥ |
- भावार्थ
घोड़े तड़फड़ाते हैं और (ठीक) रास्ते पर नहीं चलते। मानो जंगली पशु लाकर रथ में जोत दिए गए हों। वे श्री रामचन्द्रजी के वियोगी घोड़े कभी ठोकर खाकर गिर पड़ते हैं, कभी घूमकर पीछे की ओर देखने लगते हैं। वे तीक्ष्ण दुःख से व्याकुल हैं॥3॥
left|30px|link=बिबिधि कथा कहि कहि मृदु बानी|पीछे जाएँ | चरफराहिं मग चलहिं न घोरे | right|30px|link=जो कह रामु लखनु बैदेही|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (अयोध्याकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-239
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