कहेहू तें कछु दुख घटि होई: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
प्रभा तिवारी (talk | contribs) ('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - " दुख " to " दु:ख ") |
||
Line 32: | Line 32: | ||
<poem> | <poem> | ||
;चौपाई | ;चौपाई | ||
कहेहू तें कछु | कहेहू तें कछु दु:ख घटि होई। काहि कहौं यह जान न कोई॥ | ||
तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा। जानत प्रिया एकु मनु मोरा॥3॥ | तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा। जानत प्रिया एकु मनु मोरा॥3॥ | ||
</poem> | </poem> |
Latest revision as of 14:01, 2 June 2017
कहेहू तें कछु दुख घटि होई
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, दोहा, छंद और सोरठा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | सुन्दरकाण्ड |
कहेहू तें कछु दु:ख घटि होई। काहि कहौं यह जान न कोई॥ |
- भावार्थ
मन का दुःख कह डालने से भी कुछ घट जाता है। पर कहूँ किससे? यह दुःख कोई जानता नहीं। हे प्रिये! मेरे और तेरे प्रेम का तत्त्व (रहस्य) एक मेरा मन ही जानता है॥3॥
left|30px|link=कुबलय बिपिन कुंत बन सरिसा|पीछे जाएँ | कहेहू तें कछु दुख घटि होई | right|30px|link=सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख