प्राननाथ प्रिय देवर साथा: Difference between revisions
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प्राननाथ प्रिय देवर साथा। बीर धुरीन धरें धनु भाथा॥ | प्राननाथ प्रिय देवर साथा। बीर धुरीन धरें धनु भाथा॥ | ||
नहिं मग श्रमु भ्रमु | नहिं मग श्रमु भ्रमु दु:ख मन मोरें। मोहि लगि सोचु करिअ जनि भोरें॥1॥</poem> | ||
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Latest revision as of 14:01, 2 June 2017
प्राननाथ प्रिय देवर साथा
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
प्राननाथ प्रिय देवर साथा। बीर धुरीन धरें धनु भाथा॥ |
- भावार्थ
वीरों में अग्रगण्य तथा धनुष और (बाणों से भरे) तरकश धारण किए मेरे प्राणनाथ और प्यारे देवर साथ हैं। इससे मुझे न रास्ते की थकावट है, न भ्रम है और न मेरे मन में कोई दुःख ही है। आप मेरे लिए भूलकर भी सोच न करें॥1॥
left|30px|link=सासु ससुर सन मोरि हुँति|पीछे जाएँ | प्राननाथ प्रिय देवर साथा | right|30px|link=सुनि सुमंत्रु सिय सीतलि बानी|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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