जय सगुन निर्गुन रूप रूप: Difference between revisions
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जय सगुन निर्गुन रूप रूप अनूप भूप सिरोमने। | जय सगुन निर्गुन रूप रूप अनूप भूप सिरोमने। | ||
दसकंधरादि प्रचंड निसिचर प्रबल खल भुज बल हने॥ | दसकंधरादि प्रचंड निसिचर प्रबल खल भुज बल हने॥ | ||
अवतार नर संसार भार बिभंजि दारुन | अवतार नर संसार भार बिभंजि दारुन दु:ख दहे। | ||
जय प्रनतपाल दयाल प्रभु संजुक्त सक्ति नमामहे॥1॥ | जय प्रनतपाल दयाल प्रभु संजुक्त सक्ति नमामहे॥1॥ | ||
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Latest revision as of 14:01, 2 June 2017
जय सगुन निर्गुन रूप रूप
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
जय सगुन निर्गुन रूप रूप अनूप भूप सिरोमने। |
- भावार्थ
सगुण और निर्गुण रूप! हे अनुपम रूप-लावण्ययुक्त! हे राजाओं के शिरोमणि! आपकी जय हो। आपने रावण आदि प्रचण्ड, प्रबल और दुष्ट निशाचरों को अपनी भुजाओं के बल से मार डाला। आपने मनुष्य अवतार लेकर संसार के भार को नष्ट करके अत्यंत कठोर दुःखों को भस्म कर दिया। हे दयालु! हे शरणागत की रक्षा करने वाले प्रभो! आपकी जय हो। मैं शक्ति (सीता जी) सहित शक्तिमान आपको नमस्कार करता हूँ॥1॥
left|30px|link=प्रभु सर्बग्य कीन्ह|पीछे जाएँ | जय सगुन निर्गुन रूप रूप | right|30px|link=तव बिषम माया बस|आगे जाएँ |
छन्द- शब्द 'चद्' धातु से बना है जिसका अर्थ है 'आह्लादित करना', 'खुश करना'। यह आह्लाद वर्ण या मात्रा की नियमित संख्या के विन्याय से उत्पन्न होता है। इस प्रकार, छंद की परिभाषा होगी 'वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आह्लाद पैदा हो, तो उसे छंद कहते हैं'। छंद का सर्वप्रथम उल्लेख 'ऋग्वेद' में मिलता है। जिस प्रकार गद्य का नियामक व्याकरण है, उसी प्रकार पद्य का छंद शास्त्र है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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