गुंजत मधुकर मुखर अनूपा: Difference between revisions
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चक्रबाक मन | चक्रबाक मन दु:ख निसि पेखी। जिमि दुर्जन पर संपति देखी॥2॥ | ||
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Latest revision as of 14:02, 2 June 2017
गुंजत मधुकर मुखर अनूपा
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | किष्किंधा काण्ड |
गुंजत मधुकर मुखर अनूपा। सुंदर खग रव नाना रूपा॥ |
- भावार्थ
भौंरे अनुपम शब्द करते हुए गूँज रहे हैं तथा पक्षियों के नाना प्रकार के सुंदर शब्द हो रहे हैं। रात्रि देखकर चकवे के मन में वैसे ही दुःख हो रहा है, जैसे दूसरे की संपत्ति देखकर दुष्ट को होता है॥2॥
left|30px|link=सुखी मीन जे नीर अगाधा|पीछे जाएँ | गुंजत मधुकर मुखर अनूपा | right|30px|link=चातक रटत तृषा अति ओही|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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