रामचरितमानस मुनि भावन: Difference between revisions

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रामचरितमानस मुनि भावन। बिरचेउ संभु सुहावन पावन॥
रामचरितमानस मुनि भावन। बिरचेउ संभु सुहावन पावन॥
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन। कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन॥
त्रिबिध दोष दु:ख दारिद दावन। कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन॥
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Latest revision as of 14:03, 2 June 2017

रामचरितमानस मुनि भावन
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
भाषा अवधी भाषा
शैली सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड बालकाण्ड
चौपाई

रामचरितमानस मुनि भावन। बिरचेउ संभु सुहावन पावन॥
त्रिबिध दोष दु:ख दारिद दावन। कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन॥

भावार्थ-

यह रामचरितमानस मुनियों का प्रिय है, इस सुहावने और पवित्र मानस की शिव ने रचना की। यह तीनों प्रकार के दोषों, दुःखों और दरिद्रता को तथा कलियुग की कुचालों और सब पापों का नाश करने वाला है।


left|30px|link=रामचरितमानस एहि नामा|पीछे जाएँ रामचरितमानस मुनि भावन right|30px|link=रचि महेस निज मानस राखा|आगे जाएँ

चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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