रिपु तेजसी अकेल अपि: Difference between revisions
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अजहुँ देत | अजहुँ देत दु:ख रबि ससिहि सिर अवसेषित राहु॥ 170॥ | ||
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Latest revision as of 14:03, 2 June 2017
रिपु तेजसी अकेल अपि
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
रिपु तेजसी अकेल अपि लघु करि गनिअ न ताहु। |
- भावार्थ-
तेजस्वी शत्रु अकेला भी हो तो भी उसे छोटा नहीं समझना चाहिए। जिसका सिर मात्र बचा था, वह राहु आज तक सूर्य-चंद्रमा को दुःख देता है॥ 170॥
left|30px|link=तेहिं खल पाछिल बयरु सँभारा|पीछे जाएँ | रिपु तेजसी अकेल अपि | right|30px|link=तापस नृप निज सखहि निहारी|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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