पाय पखारि बैठि तरु छाहीं: Difference between revisions
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श्रम कन सहित स्याम तनु देखें। कहँ | श्रम कन सहित स्याम तनु देखें। कहँ दु:ख समउ प्रानपति पेखें॥2॥</poem> | ||
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Latest revision as of 14:05, 2 June 2017
पाय पखारि बैठि तरु छाहीं
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
पाय पखारि बैठि तरु छाहीं। करिहउँ बाउ मुदित मन माहीं॥ |
- भावार्थ
आपके पैर धोकर, पेड़ों की छाया में बैठकर, मन में प्रसन्न होकर हवा करूँगी (पंखा झलूँगी)। पसीने की बूँदों सहित श्याम शरीर को देखकर प्राणपति के दर्शन करते हुए दुःख के लिए मुझे अवकाश ही कहाँ रहेगा॥2॥
left|30px|link=मोहि मग चलत न होइहि हारी|पीछे जाएँ | पाय पखारि बैठि तरु छाहीं | right|30px|link=सम महि तृन तरुपल्लव डासी|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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