ए सब राम भगति के बाधक: Difference between revisions
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ए सब राम भगति के बाधक। कहहिं संत तव पद अवराधक॥ | ए सब राम भगति के बाधक। कहहिं संत तव पद अवराधक॥ | ||
सत्रु मित्र सुख, | सत्रु मित्र सुख, दु:ख जग माहीं। मायाकृत परमारथ नाहीं॥9॥ | ||
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Latest revision as of 14:10, 2 June 2017
ए सब राम भगति के बाधक
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | किष्किंधा काण्ड |
ए सब राम भगति के बाधक। कहहिं संत तव पद अवराधक॥ |
- भावार्थ
क्योंकि आपके चरणों की आराधना करने वाले संत कहते हैं कि ये सब (सुख-संपत्ति आदि) राम भक्ति के विरोधी हैं। जगत् में जितने भी शत्रु-मित्र और सुख-दुःख (आदि द्वंद्व) हैं, सब के सब मायारचित हैं, परमार्थतः (वास्तव में) नहीं हैं॥9॥
left|30px|link=उपजा ग्यान बचन तब बोला|पीछे जाएँ | ए सब राम भगति के बाधक | right|30px|link=बालि परम हित जासु प्रसादा|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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