एहिं जग जामिनि जागहिं जोगी: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
कविता भाटिया (talk | contribs) ('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - " जगत " to " जगत् ") |
||
Line 38: | Line 38: | ||
;भावार्थ | ;भावार्थ | ||
इस | इस जगत् रूपी रात्रि में योगी लोग जागते हैं, जो परमार्थी हैं और प्रपंच (मायिक जगत) से छूटे हुए हैं। जगत् में जीव को जागा हुआ तभी जानना चाहिए, जब सम्पूर्ण भोग-विलासों से वैराग्य हो जाए॥2॥ | ||
{{लेख क्रम4| पिछला= अस बिचारि नहिं कीजिअ रोसू |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=होइ बिबेकु मोह भ्रम भागा}} | {{लेख क्रम4| पिछला= अस बिचारि नहिं कीजिअ रोसू |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=होइ बिबेकु मोह भ्रम भागा}} |
Latest revision as of 13:46, 30 June 2017
एहिं जग जामिनि जागहिं जोगी
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
एहिं जग जामिनि जागहिं जोगी। परमारथी प्रपंच बियोगी॥ |
- भावार्थ
इस जगत् रूपी रात्रि में योगी लोग जागते हैं, जो परमार्थी हैं और प्रपंच (मायिक जगत) से छूटे हुए हैं। जगत् में जीव को जागा हुआ तभी जानना चाहिए, जब सम्पूर्ण भोग-विलासों से वैराग्य हो जाए॥2॥
left|30px|link=अस बिचारि नहिं कीजिअ रोसू|पीछे जाएँ | एहिं जग जामिनि जागहिं जोगी | right|30px|link=होइ बिबेकु मोह भ्रम भागा|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख