आयसु होइ त रहौं सनेमा: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
कविता भाटिया (talk | contribs) ('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - " जगत " to " जगत् ") |
||
Line 38: | Line 38: | ||
{{poemclose}} | {{poemclose}} | ||
;भावार्थ | ;भावार्थ | ||
आज्ञा हो तो मैं नियमपूर्वक रहूँ! मुनि वशिष्ठजी पुलकित शरीर हो प्रेम के साथ बोले- हे भरत! तुम जो कुछ समझोगे, कहोगे और करोगे, वही | आज्ञा हो तो मैं नियमपूर्वक रहूँ! मुनि वशिष्ठजी पुलकित शरीर हो प्रेम के साथ बोले- हे भरत! तुम जो कुछ समझोगे, कहोगे और करोगे, वही जगत् में धर्म का सार होगा॥4॥ | ||
{{लेख क्रम4| पिछला=परिजन पुरजन प्रजा बोलाए |मुख्य शर्षक=रामचरितमानस |अगला= सुनि सिख पाइ असीस}} | {{लेख क्रम4| पिछला=परिजन पुरजन प्रजा बोलाए |मुख्य शर्षक=रामचरितमानस |अगला= सुनि सिख पाइ असीस}} |
Latest revision as of 13:49, 30 June 2017
आयसु होइ त रहौं सनेमा
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
सभी (7) काण्ड क्रमश: | बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड, उत्तरकाण्ड |
आयसु होइ त रहौं सनेमा। बोले मुनि तन पुलकि सपेमा॥ |
- भावार्थ
आज्ञा हो तो मैं नियमपूर्वक रहूँ! मुनि वशिष्ठजी पुलकित शरीर हो प्रेम के साथ बोले- हे भरत! तुम जो कुछ समझोगे, कहोगे और करोगे, वही जगत् में धर्म का सार होगा॥4॥
left|30px|link=परिजन पुरजन प्रजा बोलाए|पीछे जाएँ | आयसु होइ त रहौं सनेमा | right|30px|link=सुनि सिख पाइ असीस|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (अयोध्याकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-315
संबंधित लेख