जबहिं संभु कैलासहिं आए: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
m (Text replacement - " जगत " to " जगत् ")
 
Line 37: Line 37:
{{poemclose}}
{{poemclose}}
;भावार्थ-
;भावार्थ-
जब शिव कैलास पर्वत पर पहुँचे, तब सब देवता अपने-अपने लोकों को चले गए। ([[तुलसीदास]] कहते हैं कि) [[पार्वती]] और [[शिव]] जगत के माता-पिता हैं, इसलिए मैं उनके श्रृंगार का वर्णन नहीं करता।
जब शिव कैलास पर्वत पर पहुँचे, तब सब देवता अपने-अपने लोकों को चले गए। ([[तुलसीदास]] कहते हैं कि) [[पार्वती]] और [[शिव]] जगत् के माता-पिता हैं, इसलिए मैं उनके श्रृंगार का वर्णन नहीं करता।


{{लेख क्रम4| पिछला=तुरत भवन आए गिरिराई |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=करहिं बिबिध बिधि भोग बिलासा}}
{{लेख क्रम4| पिछला=तुरत भवन आए गिरिराई |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=करहिं बिबिध बिधि भोग बिलासा}}

Latest revision as of 13:49, 30 June 2017

जबहिं संभु कैलासहिं आए
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
भाषा अवधी भाषा
शैली सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड बालकाण्ड
चौपाई

जबहिं संभु कैलासहिं आए। सुर सब निज निज लोक सिधाए॥
जगत मातु पितु संभु भवानी। तेहिं सिंगारु न कहउँ बखानी॥

भावार्थ-

जब शिव कैलास पर्वत पर पहुँचे, तब सब देवता अपने-अपने लोकों को चले गए। (तुलसीदास कहते हैं कि) पार्वती और शिव जगत् के माता-पिता हैं, इसलिए मैं उनके श्रृंगार का वर्णन नहीं करता।


left|30px|link=तुरत भवन आए गिरिराई|पीछे जाएँ जबहिं संभु कैलासहिं आए right|30px|link=करहिं बिबिध बिधि भोग बिलासा|आगे जाएँ

चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख