झूठेउ सत्य जाहि बिनु जानें: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
सपना वर्मा (talk | contribs) ('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - " जगत " to " जगत् ") |
||
Line 37: | Line 37: | ||
{{poemclose}} | {{poemclose}} | ||
;भावार्थ- | ;भावार्थ- | ||
जिसके बिना जाने झूठ भी सत्य मालूम होता है, जैसे बिना पहचाने रस्सी में साँप का भ्रम हो जाता है; और जिसके जान लेने पर | जिसके बिना जाने झूठ भी सत्य मालूम होता है, जैसे बिना पहचाने रस्सी में साँप का भ्रम हो जाता है; और जिसके जान लेने पर जगत् का उसी तरह लोप हो जाता है, जैसे जागने पर स्वप्न का भ्रम जाता रहता है। | ||
{{लेख क्रम4| पिछला=मगन ध्यान रस दंड |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=बंदउँ बालरूप सोइ रामू}} | {{लेख क्रम4| पिछला=मगन ध्यान रस दंड |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=बंदउँ बालरूप सोइ रामू}} |
Latest revision as of 13:52, 30 June 2017
झूठेउ सत्य जाहि बिनु जानें
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
झूठेउ सत्य जाहि बिनु जानें। जिमि भुजंग बिनु रजु पहिचानें॥ |
- भावार्थ-
जिसके बिना जाने झूठ भी सत्य मालूम होता है, जैसे बिना पहचाने रस्सी में साँप का भ्रम हो जाता है; और जिसके जान लेने पर जगत् का उसी तरह लोप हो जाता है, जैसे जागने पर स्वप्न का भ्रम जाता रहता है।
left|30px|link=मगन ध्यान रस दंड|पीछे जाएँ | झूठेउ सत्य जाहि बिनु जानें | right|30px|link=बंदउँ बालरूप सोइ रामू|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख