अस्तुति करि न जाइ भय माना: Difference between revisions

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;चौपाई
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अस्तुति करि न जाइ भय माना। जगत पिता मैं सुत करि जाना॥
अस्तुति करि न जाइ भय माना। जगत् पिता मैं सुत करि जाना॥
हरि जननी बहुबिधि समुझाई। यह जनि कतहुँ कहसि सुनु माई॥
हरि जननी बहुबिधि समुझाई। यह जनि कतहुँ कहसि सुनु माई॥
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Latest revision as of 13:54, 30 June 2017

अस्तुति करि न जाइ भय माना
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
भाषा अवधी भाषा
शैली सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड बालकाण्ड
चौपाई

अस्तुति करि न जाइ भय माना। जगत् पिता मैं सुत करि जाना॥
हरि जननी बहुबिधि समुझाई। यह जनि कतहुँ कहसि सुनु माई॥

भावार्थ-

(माता से) स्तुति भी नहीं की जाती। वह डर गई कि मैंने जगत्पिता परमात्मा को पुत्र करके जाना। हरि ने माता को बहुत प्रकार से समझाया (और कहा -) हे माता! सुनो, यह बात कहीं पर कहना नहीं।


left|30px|link=तन पुलकित मुख बचन न आवा|पीछे जाएँ अस्तुति करि न जाइ भय माना right|30px|link=बार बार कौसल्या बिनय|आगे जाएँ

चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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