कृष्णाश्रयी शाखा: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replacement - " महान " to " महान् ")
Line 1: Line 1:
'''कृष्णाश्रयी शाखा''' का सबसे अधिक प्रचार और प्रसार हुआ है। कृष्णाश्रयी शाखा में भगवान [[कृष्ण]] के सौंदर्य-पक्ष की ही प्रधानता रही। कृष्ण का चरित्र विलक्षण है। उनका ध्यान कृष्ण के मधुर रूप और उनकी लीला माधुरी पर ही केंद्रित रहा। भगवान की महिमा का गान करते हुए कहीं-कहीं प्रसंगवश उनके लोक रक्षक रूप का भी उल्लेख कर दिया है, किन्तु मुख्य विषय गोपी-कृष्ण का प्रेम है। कृष्ण-भक्ति का केन्द्र [[वृन्दावन]] था। श्री कृष्ण की लीला-भूमि होने के कारण उनके भक्तों ने भी [[ब्रज]] को अपना निवास स्थान बनाया। [[रसखान]] के भी वृन्दावन में रहने का उल्लेख मिलता है।  अनेक संप्रदायों में उच्च कोटि के कवि हुए हैं। इनमें [[वल्लभाचार्य]] के पुष्टि-संप्रदाय के [[सूरदास]] जैसे महान कवि हुए हैं।
'''कृष्णाश्रयी शाखा''' का सबसे अधिक प्रचार और प्रसार हुआ है। कृष्णाश्रयी शाखा में भगवान [[कृष्ण]] के सौंदर्य-पक्ष की ही प्रधानता रही। कृष्ण का चरित्र विलक्षण है। उनका ध्यान कृष्ण के मधुर रूप और उनकी लीला माधुरी पर ही केंद्रित रहा। भगवान की महिमा का गान करते हुए कहीं-कहीं प्रसंगवश उनके लोक रक्षक रूप का भी उल्लेख कर दिया है, किन्तु मुख्य विषय गोपी-कृष्ण का प्रेम है। कृष्ण-भक्ति का केन्द्र [[वृन्दावन]] था। श्री कृष्ण की लीला-भूमि होने के कारण उनके भक्तों ने भी [[ब्रज]] को अपना निवास स्थान बनाया। [[रसखान]] के भी वृन्दावन में रहने का उल्लेख मिलता है।  अनेक संप्रदायों में उच्च कोटि के कवि हुए हैं। इनमें [[वल्लभाचार्य]] के पुष्टि-संप्रदाय के [[सूरदास]] जैसे महान् कवि हुए हैं।


वात्सल्य एवं शृंगार रस के शिरोमणि भक्त-कवि सूरदास के पदों का परवर्ती [[हिन्दी]] साहित्य पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है। इस शाखा के कवियों ने प्रायः मुक्तक काव्य ही लिखा है। श्री कृष्ण का बाल एवं किशोर रूप ही इन कवियों को आकर्षित कर पाया है, इसलिए इनके काव्यों में श्रीकृष्ण के ऐश्वर्य की अपेक्षा माधुर्य की ही प्रधानता रही है। लगभग सभी कवि गायक थे, इसलिए कविता और [[संगीत]] का अद्भुत सुंदर समन्वय इन कवियों की रचनाओं में प्राप्त होता है। गीति-काव्य की जो परंपरा [[जयदेव]] और [[विद्यापति]] ने पल्लवित की थी, उसका चरम-विकास इन कवियों द्वारा हुआ है। मानव की साधारण प्रेम-लीलाओं को [[राधा]]-कृष्ण की अलौकिक प्रेमलीला द्वारा व्यंजित करके उन्होंने जन-मानस को [[रस]] में डूबो दिया। आनंद की एक लहर देश भर में दौड ग़ई। कृष्णाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि [[सूरदास]], [[नंददास]], [[मीराबाई]], [[हितहरिवंश]], [[हरिदास]], [[रसखान]], [[नरोत्तमदास]] आदि थे। [[रहीम]] भी इसी समय हुए।  
वात्सल्य एवं शृंगार रस के शिरोमणि भक्त-कवि सूरदास के पदों का परवर्ती [[हिन्दी]] साहित्य पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है। इस शाखा के कवियों ने प्रायः मुक्तक काव्य ही लिखा है। श्री कृष्ण का बाल एवं किशोर रूप ही इन कवियों को आकर्षित कर पाया है, इसलिए इनके काव्यों में श्रीकृष्ण के ऐश्वर्य की अपेक्षा माधुर्य की ही प्रधानता रही है। लगभग सभी कवि गायक थे, इसलिए कविता और [[संगीत]] का अद्भुत सुंदर समन्वय इन कवियों की रचनाओं में प्राप्त होता है। गीति-काव्य की जो परंपरा [[जयदेव]] और [[विद्यापति]] ने पल्लवित की थी, उसका चरम-विकास इन कवियों द्वारा हुआ है। मानव की साधारण प्रेम-लीलाओं को [[राधा]]-कृष्ण की अलौकिक प्रेमलीला द्वारा व्यंजित करके उन्होंने जन-मानस को [[रस]] में डूबो दिया। आनंद की एक लहर देश भर में दौड ग़ई। कृष्णाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि [[सूरदास]], [[नंददास]], [[मीराबाई]], [[हितहरिवंश]], [[हरिदास]], [[रसखान]], [[नरोत्तमदास]] आदि थे। [[रहीम]] भी इसी समय हुए।  

Revision as of 14:04, 30 June 2017

कृष्णाश्रयी शाखा का सबसे अधिक प्रचार और प्रसार हुआ है। कृष्णाश्रयी शाखा में भगवान कृष्ण के सौंदर्य-पक्ष की ही प्रधानता रही। कृष्ण का चरित्र विलक्षण है। उनका ध्यान कृष्ण के मधुर रूप और उनकी लीला माधुरी पर ही केंद्रित रहा। भगवान की महिमा का गान करते हुए कहीं-कहीं प्रसंगवश उनके लोक रक्षक रूप का भी उल्लेख कर दिया है, किन्तु मुख्य विषय गोपी-कृष्ण का प्रेम है। कृष्ण-भक्ति का केन्द्र वृन्दावन था। श्री कृष्ण की लीला-भूमि होने के कारण उनके भक्तों ने भी ब्रज को अपना निवास स्थान बनाया। रसखान के भी वृन्दावन में रहने का उल्लेख मिलता है। अनेक संप्रदायों में उच्च कोटि के कवि हुए हैं। इनमें वल्लभाचार्य के पुष्टि-संप्रदाय के सूरदास जैसे महान् कवि हुए हैं।

वात्सल्य एवं शृंगार रस के शिरोमणि भक्त-कवि सूरदास के पदों का परवर्ती हिन्दी साहित्य पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है। इस शाखा के कवियों ने प्रायः मुक्तक काव्य ही लिखा है। श्री कृष्ण का बाल एवं किशोर रूप ही इन कवियों को आकर्षित कर पाया है, इसलिए इनके काव्यों में श्रीकृष्ण के ऐश्वर्य की अपेक्षा माधुर्य की ही प्रधानता रही है। लगभग सभी कवि गायक थे, इसलिए कविता और संगीत का अद्भुत सुंदर समन्वय इन कवियों की रचनाओं में प्राप्त होता है। गीति-काव्य की जो परंपरा जयदेव और विद्यापति ने पल्लवित की थी, उसका चरम-विकास इन कवियों द्वारा हुआ है। मानव की साधारण प्रेम-लीलाओं को राधा-कृष्ण की अलौकिक प्रेमलीला द्वारा व्यंजित करके उन्होंने जन-मानस को रस में डूबो दिया। आनंद की एक लहर देश भर में दौड ग़ई। कृष्णाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि सूरदास, नंददास, मीराबाई, हितहरिवंश, हरिदास, रसखान, नरोत्तमदास आदि थे। रहीम भी इसी समय हुए।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख