नृप सब नखत करहिं उजिआरी: Difference between revisions
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Latest revision as of 14:07, 30 June 2017
नृप सब नखत करहिं उजिआरी
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
नृप सब नखत करहिं उजिआरी। टारि न सकहिं चाप तम भारी॥ |
- भावार्थ-
सब राजारूपी तारे उजाला (मंद प्रकाश) करते हैं, पर वे धनुषरूपी महान् अंधकार को हटा नहीं सकते। रात्रि का अंत होने से जैसे कमल, चकवे, भौंरे और नाना प्रकार के पक्षी हर्षित हो रहे हैं।
left|30px|link=अरुनोदयँ सकुचे कुमुद|पीछे जाएँ | नृप सब नखत करहिं उजिआरी | right|30px|link=ऐसेहिं प्रभु सब भगत तुम्हारे|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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