जौं छबि सुधा पयोनिधि होई: Difference between revisions
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(जिन लक्ष्मी की बात ऊपर कही गई है, वे निकली थीं खारे समुद्र से, जिसको मथने के लिए भगवान ने अति कर्कश पीठवाले कच्छप का रूप धारण किया, रस्सी बनाई गई | (जिन लक्ष्मी की बात ऊपर कही गई है, वे निकली थीं खारे समुद्र से, जिसको मथने के लिए भगवान ने अति कर्कश पीठवाले कच्छप का रूप धारण किया, रस्सी बनाई गई महान् विषधर वासुकि नाग की, मथानी का कार्य किया अतिशय कठोर मंदराचल पर्वत ने और उसे मथा सारे देवताओं और दैत्यों ने मिलकर। जिन लक्ष्मी को अतिशय शोभा की खान और अनुपम सुंदरी कहते हैं, उनको प्रकट करने में हेतु बने ये सब असुंदर एवं स्वाभाविक ही कठोर उपकरण। ऐसे उपकरणों से प्रकट हुई लक्ष्मी जानकी की समता को कैसे पा सकती हैं। हाँ, इसके विपरीत) यदि छविरूपी अमृत का समुद्र हो, परम रूपमय कच्छप हो, शोभा रूप रस्सी हो, श्रृंगार (रस) पर्वत हो और (उस छवि के समुद्र को) स्वयं कामदेव अपने ही करकमल से मथे, | ||
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Latest revision as of 14:18, 30 June 2017
जौं छबि सुधा पयोनिधि होई
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
जौं छबि सुधा पयोनिधि होई। परम रूपमय कच्छपु सोई॥ |
- भावार्थ-
(जिन लक्ष्मी की बात ऊपर कही गई है, वे निकली थीं खारे समुद्र से, जिसको मथने के लिए भगवान ने अति कर्कश पीठवाले कच्छप का रूप धारण किया, रस्सी बनाई गई महान् विषधर वासुकि नाग की, मथानी का कार्य किया अतिशय कठोर मंदराचल पर्वत ने और उसे मथा सारे देवताओं और दैत्यों ने मिलकर। जिन लक्ष्मी को अतिशय शोभा की खान और अनुपम सुंदरी कहते हैं, उनको प्रकट करने में हेतु बने ये सब असुंदर एवं स्वाभाविक ही कठोर उपकरण। ऐसे उपकरणों से प्रकट हुई लक्ष्मी जानकी की समता को कैसे पा सकती हैं। हाँ, इसके विपरीत) यदि छविरूपी अमृत का समुद्र हो, परम रूपमय कच्छप हो, शोभा रूप रस्सी हो, श्रृंगार (रस) पर्वत हो और (उस छवि के समुद्र को) स्वयं कामदेव अपने ही करकमल से मथे,
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चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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