सो फलु मोहि बिधाताँ दीन्हा: Difference between revisions

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उसका फल विधाता ने मुझको दिया, जो उचित था वही किया; परंतु हे विधाता! अब तुझे यह उचित नहीं है, जो शंकर से विमुख होने पर भी मुझे जिला रहा है।
उसका फल विधाता ने मुझको दिया, जो उचित था वही किया; परंतु हे विधाता! अब तुझे यह उचित नहीं है, जो शंकर से विमुख होने पर भी मुझे ज़िला रहा है।


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Latest revision as of 10:47, 5 July 2017

सो फलु मोहि बिधाताँ दीन्हा
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
भाषा अवधी भाषा
शैली सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड बालकाण्ड
चौपाई

सो फलु मोहि बिधाताँ दीन्हा। जो कछु उचित रहा सोइ कीन्हा॥
अब बिधि अस बूझिअ नहिं तोही। संकर बिमुख जिआवसि मोही॥

भावार्थ-

उसका फल विधाता ने मुझको दिया, जो उचित था वही किया; परंतु हे विधाता! अब तुझे यह उचित नहीं है, जो शंकर से विमुख होने पर भी मुझे ज़िला रहा है।


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चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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