असुर सेन सम नरक निकंदिनि: Difference between revisions

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यह रामकथा असुरों की सेना के समान नरकों का नाश करनेवाली और साधु- रूप देवताओं के कुल का हित करनेवाली पार्वत है। यह संत-समाजरूपी क्षीर समुद्र के लिए लक्ष्मी के समान है और संपूर्ण विश्व का भार उठाने में अचल पृथ्वी के समान है।
यह रामकथा असुरों की सेना के समान नरकों का नाश करने वाली और साधु- रूप देवताओं के कुल का हित करने वाली पार्वत है। यह संत-समाजरूपी क्षीर समुद्र के लिए लक्ष्मी के समान है और संपूर्ण विश्व का भार उठाने में अचल पृथ्वी के समान है।


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Latest revision as of 13:18, 6 September 2017

असुर सेन सम नरक निकंदिनि
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
भाषा अवधी भाषा
शैली सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड बालकाण्ड
चौपाई

असुर सेन सम नरक निकंदिनि। साधु बिबुध कुल हित गिरिनंदिनि॥
संत समाज पयोधि रमा सी। बिस्व भार भर अचल छमा सी॥

भावार्थ-

यह रामकथा असुरों की सेना के समान नरकों का नाश करने वाली और साधु- रूप देवताओं के कुल का हित करने वाली पार्वत है। यह संत-समाजरूपी क्षीर समुद्र के लिए लक्ष्मी के समान है और संपूर्ण विश्व का भार उठाने में अचल पृथ्वी के समान है।


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चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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