प्रभु तन चितइ प्रेम तन ठाना: Difference between revisions
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Latest revision as of 07:45, 7 November 2017
प्रभु तन चितइ प्रेम तन ठाना
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
प्रभु तन चितइ प्रेम तन ठाना। कृपानिधान राम सबु जाना॥ |
- भावार्थ-
प्रभु की ओर देखकर सीता ने शरीर के द्वारा प्रेम ठान लिया (अर्थात् यह निश्चय कर लिया कि यह शरीर इन्हीं का होकर रहेगा या रहेगा ही नहीं) कृपानिधान राम सब जान गए। उन्होंने सीता को देखकर धनुष की ओर कैसे ताका, जैसे गरुड़ छोटे-से साँप की ओर देखते हैं।
left|30px|link=तौ भगवानु सकल उर बासी|पीछे जाएँ | प्रभु तन चितइ प्रेम तन ठाना | right|30px|link=लखन लखेउ रघुबंसमनि|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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