देह दिनहुँ दिन दूबरि होई: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
m (Text replacement - "अर्थात " to "अर्थात् ")
 
Line 38: Line 38:
{{poemclose}}
{{poemclose}}
;भावार्थ
;भावार्थ
भरतजी का शरीर दिनों-दिन दुबला होता जाता है। तेज (अन्न, घृत आदि से उत्पन्न होने वाला मेद*) घट रहा है। बल और मुख छबि (मुख की कान्ति अथवा शोभा) वैसी ही बनी हुई है। राम प्रेम का प्रण नित्य नया और पुष्ट होता है, धर्म का दल बढ़ता है और मन उदास नहीं है (अर्थात प्रसन्न है)॥1॥
भरतजी का शरीर दिनों-दिन दुबला होता जाता है। तेज (अन्न, घृत आदि से उत्पन्न होने वाला मेद*) घट रहा है। बल और मुख छबि (मुख की कान्ति अथवा शोभा) वैसी ही बनी हुई है। राम प्रेम का प्रण नित्य नया और पुष्ट होता है, धर्म का दल बढ़ता है और मन उदास नहीं है (अर्थात् प्रसन्न है)॥1॥
* संस्कृत कोष में 'तेज' का अर्थ मेद मिलता है और यह अर्थ लेने से 'घटइ' के अर्थ में भी किसी प्रकार की खींच-तान नहीं करनी पड़ती।
* संस्कृत कोष में 'तेज' का अर्थ मेद मिलता है और यह अर्थ लेने से 'घटइ' के अर्थ में भी किसी प्रकार की खींच-तान नहीं करनी पड़ती।
{{लेख क्रम4| पिछला=राम प्रेम भाजन भरतु |मुख्य शर्षक=रामचरितमानस |अगला=जिमि जलु निघटत सरद प्रकासे}}
{{लेख क्रम4| पिछला=राम प्रेम भाजन भरतु |मुख्य शर्षक=रामचरितमानस |अगला=जिमि जलु निघटत सरद प्रकासे}}

Latest revision as of 07:53, 7 November 2017

देह दिनहुँ दिन दूबरि होई
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड अयोध्या काण्ड
सभी (7) काण्ड क्रमश: बालकाण्ड‎, अयोध्या काण्ड‎, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड‎, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड‎, उत्तरकाण्ड

 

चौपाई

देह दिनहुँ दिन दूबरि होई। घटइ तेजु बलु मुखछबि सोई॥
नित नव राम प्रेम पनु पीना। बढ़त धरम दलु मनु न मलीना॥1॥

भावार्थ

भरतजी का शरीर दिनों-दिन दुबला होता जाता है। तेज (अन्न, घृत आदि से उत्पन्न होने वाला मेद*) घट रहा है। बल और मुख छबि (मुख की कान्ति अथवा शोभा) वैसी ही बनी हुई है। राम प्रेम का प्रण नित्य नया और पुष्ट होता है, धर्म का दल बढ़ता है और मन उदास नहीं है (अर्थात् प्रसन्न है)॥1॥

  • संस्कृत कोष में 'तेज' का अर्थ मेद मिलता है और यह अर्थ लेने से 'घटइ' के अर्थ में भी किसी प्रकार की खींच-तान नहीं करनी पड़ती।


left|30px|link=राम प्रेम भाजन भरतु|पीछे जाएँ देह दिनहुँ दिन दूबरि होई right|30px|link=जिमि जलु निघटत सरद प्रकासे|आगे जाएँ

चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।

पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (अयोध्याकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-316

संबंधित लेख