अंकोल: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replacement - "khoj.bharatdiscovery.org" to "bharatkhoj.org")
No edit summary
 
Line 23: Line 23:
|अद्यतन=
|अद्यतन=
}}
}}
'''अंकोल''' नामक पौधा अंकोट कुल का एक सदस्य है। वनस्पतिशास्त्र की भाषा में इसे 'एलैजियम सैल्वीफ़ोलियम' या 'एलैजियम लामार्की' भी कहते हैं। वैसे विभिन्न भाषाओं में इसे विभिन्न प्रकार के नामों से पुकारा जाता है, जो निम्नलिखित हैं-
'''अंकोल''' एक पेड़, जो सारे [[भारत|भारतवर्ष]] में प्रायः पहाड़ी जमीन पर होता है। यह शरीफे के पेड़ से मिलता-जुलता है। इसमें [[बेर]] के बराबर गोल [[फल]] लगते हैं, जो पकने पर काले हो जाते हैं। छिलका हटाने पर इसके भीतर बीज पर लिपटा हुआ सफेद गूदा होता है, जो खाने में कुछ मीठा होता है। इस पेड़ की लकढ़ी कड़ी होती है और छड़ी आदि बनाने के काम में आती है। इसकी जड़ की छाल दस्त लाने, वमन कराने, कोढ़ और उपदंश आदि चर्म रोगों को दूर करने तथा सर्प आदि विषैले जंतुओं के विष को हटाने में उपयोगी मानी जाती है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिंदी शब्दसागर, प्रथम भाग |लेखक= श्यामसुंदरदास बी. ए.|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=नागरी मुद्रण, वाराणसी |संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=04|url=|ISBN=}}</ref>
 
यह पौधा अंकोट कुल का एक सदस्य है। वनस्पतिशास्त्र की भाषा में इसे 'एलैजियम सैल्वीफ़ोलियम' या 'एलैजियम लामार्की' भी कहते हैं। वैसे विभिन्न भाषाओं में इसे विभिन्न प्रकार के नामों से पुकारा जाता है, जो निम्नलिखित हैं-
#[[संस्कृत]] - अंकोट, दीर्घकील
#[[संस्कृत]] - अंकोट, दीर्घकील
#हिंदी दक्षिणी - ढेरा, थेल, अंकूल
#हिंदी दक्षिणी - ढेरा, थेल, अंकूल
Line 46: Line 48:
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{वृक्ष}}
{{वृक्ष}}
Line 54: Line 54:
[[Category:औषधीय पौधे]][[Category:विज्ञान कोश]]
[[Category:औषधीय पौधे]][[Category:विज्ञान कोश]]
[[Category:वनस्पति कोश]][[Category:वनस्पति]]
[[Category:वनस्पति कोश]][[Category:वनस्पति]]
[[Category:हिन्दी विश्वकोश]]
[[Category:हिन्दी विश्वकोश]][[Category:हिंदी शब्द सागर]]
 
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Latest revision as of 09:04, 2 January 2020

अंकोल
जगत पादप (Plantae)
संघ एंजियोस्पर्म (Angiosperms)
गण कॉर्नेल्स (Cornales)
कुल कॉर्नेसी या एलेंगियेसी (Cornaceae or Alangiaceae)
जाति एलैंजियम (Alangium)
प्रजाति सैल्वीफ़ोलियम (salviifolium)
द्विपद नाम एलैंजियम सैल्वीफ़ोलियम (Alangium salviifolium)
अन्य जानकारी अपने रोग नाशक गुणों के कारण यह पौधा चिकित्साशास्त्र में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। रक्तचाप को कम करने में इसका पूर्ण बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुआ है।

अंकोल एक पेड़, जो सारे भारतवर्ष में प्रायः पहाड़ी जमीन पर होता है। यह शरीफे के पेड़ से मिलता-जुलता है। इसमें बेर के बराबर गोल फल लगते हैं, जो पकने पर काले हो जाते हैं। छिलका हटाने पर इसके भीतर बीज पर लिपटा हुआ सफेद गूदा होता है, जो खाने में कुछ मीठा होता है। इस पेड़ की लकढ़ी कड़ी होती है और छड़ी आदि बनाने के काम में आती है। इसकी जड़ की छाल दस्त लाने, वमन कराने, कोढ़ और उपदंश आदि चर्म रोगों को दूर करने तथा सर्प आदि विषैले जंतुओं के विष को हटाने में उपयोगी मानी जाती है।[1]

यह पौधा अंकोट कुल का एक सदस्य है। वनस्पतिशास्त्र की भाषा में इसे 'एलैजियम सैल्वीफ़ोलियम' या 'एलैजियम लामार्की' भी कहते हैं। वैसे विभिन्न भाषाओं में इसे विभिन्न प्रकार के नामों से पुकारा जाता है, जो निम्नलिखित हैं-

  1. संस्कृत - अंकोट, दीर्घकील
  2. हिंदी दक्षिणी - ढेरा, थेल, अंकूल
  3. बंगला - आँकोड़
  4. सहारनपुर क्षेत्र - विसमार
  5. मराठी - आंकुल
  6. गुजराती - ओबला
  7. कोल - अंकोल एवं
  8. संथाली - ढेला

पौधे की आकृति

यह बड़े क्षुप या छोटे वृक्ष होते हैं, जो 3 से 6 मीटर लंबे होते हैं। इसके तने की मोटाई 2.5 फ़ुट होती है तथा यह भूरे रंग की छाल से ढका रहता है। पुराने वृक्षों के तने तीक्ष्णाग्र होने से काँटेदार या र्केटकीभूत होते हैं। इनकी पंक्तियाँ तीन से छह इंच लंबी, अपलक, दीर्घवतया लंबगोल, नुकीली या हल्की नोंक वाली, आधार की तरफ़ पतली या विभिन्न गोलाई लिए हुए होती हैं। इनका ऊपरी तल चिकना एवं निचला तल मुलायम रोमों से युक्त होता है। मुख्य शिरा से पाँच से लेकर आठ की संख्या में छोटी शिराएँ निकलकर पूरे पत्र दल में फैल जाती हैं। ये पत्तियाँ एकांतर क्रम में लगभग आधे इंच लंबे पूर्णवृत द्वारा पौधे की शाखाओं से लगी रहती हैं।

पुष्प तथा फल

पुष्प श्वेत एवं मीठी गंध से युक्त होते हैं। फ़रवरी से अप्रैल तक इस पौधे में फूल लगते हैं। बाह्य दल रोमयुक्त एवं परस्पर एक-दूसरे से मिलकर एक नलिकाकार रचना बनाते हैं, जिसका ऊपरी किनारा बहुत छोटे-छोटे भागों में कटा रहता है। इन्हें बाह्यदलपुंज दंत कहते हैं। इसमें लगने वाला फल बेरी कहलाता है, जो 5/8 इंच लंबा, 3/8 इंच चौड़ा काला अंडाकार तथा बाह्यदलपुंज के बढ़े हुए हिस्से से ढका रहता है। प्रारंभ में फल मुलायम रोमों से ढका रहता है, परंतु रोमों के झड़ जाने के बाद चिकना हो जाता है। गुठली या अंतभित्ति कठोर होती है। बीच का गूदा काली आभा लिए लाल रंग का होता है। बीज लंबोतरा या दीर्घवत्‌ एवं भारी पदार्थों से भरा रहता है। बीज पत्र सिकुड़े होते हैं।

औषधीय गुण

इस पौधे की जड़ में 0.8 प्रतिशत अंकोटीन नामक पदार्थ पाया जाता है। इसके तेल में भी 0.2 प्रतिशत यह पदार्थ पाया जाता है। अपने रोग नाशक गुणों के कारण यह पौधा चिकित्साशास्त्र में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। रक्तचाप को कम करने में इसका पूर्ण बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुआ है।

प्राप्ति स्थान

हिमालय की तराई, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, दक्षिण भारत एवं बर्मा आदि क्षेत्रों में यह पौधा सरलता से प्राप्य है।[2]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिंदी शब्दसागर, प्रथम भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 04 |
  2. अंकोल (हिंदी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 11 जून, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख