गौस मोहम्मद का मक़बरा: Difference between revisions

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'''गौस मोहम्मद का मक़बरा''' [[ग्वालियर]], [[मध्य प्रदेश]] में स्थित है। [[मुस्लिम]] गुरु और [[हिंदू]] शिष्य के अनूठे प्रेम का प्रतीक यह मक़बरा दुनिया का एकमात्र ऐसा ऐतिहासिक स्मारक है जहां देश-विदेश के गायक व संगीतकार मन्नत मांगने आते हैं। सूफी संत गौस मोहम्मद का मक़बरा [[मुग़ल]] सम्राट [[अकबर]] ने सन् 1666 में बनवाया था। उनके शिष्य [[तानसेन स्मारक, ग्वालियर|तानसेन का स्मारक]] भी यहीं बना है। यहां से हर साल तानसेन समारोह की शुरुआत होती है। देश-विदेश के पर्यटक भी यहां सालभर आते रहते हैं।<br />
'''गौस मोहम्मद का मक़बरा''' [[ग्वालियर]], [[मध्य प्रदेश]] में स्थित है। [[मुस्लिम]] गुरु और [[हिंदू]] शिष्य के अनूठे प्रेम का प्रतीक यह मक़बरा दुनिया का एकमात्र ऐसा ऐतिहासिक स्मारक है जहां देश-विदेश के गायक व संगीतकार मन्नत मांगने आते हैं। सूफी संत गौस मोहम्मद का मक़बरा [[मुग़ल]] सम्राट [[अकबर]] ने सन् 1666 में बनवाया था। उनके शिष्य [[तानसेन स्मारक, ग्वालियर|तानसेन का स्मारक]] भी यहीं बना है। यहां से हर साल तानसेन समारोह की शुरुआत होती है। देश-विदेश के पर्यटक भी यहां सालभर आते रहते हैं।<br />
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thumb|300px|गौस मोहम्मद का मक़बरा गौस मोहम्मद का मक़बरा ग्वालियर, मध्य प्रदेश में स्थित है। मुस्लिम गुरु और हिंदू शिष्य के अनूठे प्रेम का प्रतीक यह मक़बरा दुनिया का एकमात्र ऐसा ऐतिहासिक स्मारक है जहां देश-विदेश के गायक व संगीतकार मन्नत मांगने आते हैं। सूफी संत गौस मोहम्मद का मक़बरा मुग़ल सम्राट अकबर ने सन् 1666 में बनवाया था। उनके शिष्य तानसेन का स्मारक भी यहीं बना है। यहां से हर साल तानसेन समारोह की शुरुआत होती है। देश-विदेश के पर्यटक भी यहां सालभर आते रहते हैं।

  1. मोहम्मद गौस की मृत्यु आगरा में हुई थी, लेकिन उन्हें दफन ग्वालियर में किया था। गौस के मकबरे का निर्माण सम्राट अकबर ने सन् 1606 में कराया।
  2. यह स्मारक मुगल शैली का है। इसमें परशियन, इस्लामिक व भारतीय तीनों तरह का स्थापत्य देखने को मिलता है।
  3. स्मारक में बलुआ पत्थरों का प्रयोग किया गया है। यह 200x200 वर्गफीट आकार का चौकोर भवन है। इसके मध्य भाग में एक विशाल कक्ष है, जिसके बीच में मोहम्मद गौस का मजार है। इस कक्ष के ऊपरी भाग में एक विशाल अर्ध गोलाकार गुम्बद बना हुआ है, जो कभी नीले रंग की टाइलों से ढका हुआ था। विशाल कक्ष के चारों ओर सुंदर पत्थर की जालियों से ढकी नक्काशीदार मेहराबें हैं। इसकी छत पर मुग़लकालीन चित्रकला की गई है। भवन के चारों कोनों पर तीन मंजिलें मेहराबों वाली मीनारें बनी हुई हैं।[1]
  4. मोहम्मद गौस ने बाबर, हुमायूंअकबर तीनों मुगल सम्राटों का कार्यकाल देखा। चूंकि ये तीनों मुगल सम्राट इनके शिष्य थे, इस कारण दरबार में उन्हें उच्च स्थान प्रदान किया गया। संगीत सम्राट तानसेन सबसे पहले शेरशाह सूरी के दरबार में गए, लेकिन वहां का माहौल अच्छा न देखकर रीवा नरेश रामचंद्र की शरण में चले गए। यहीं से सम्राट अकबर तानसेन को अपने दरबार में ले गये।
  5. स्मारक में लगी पत्थर की झिलमिली कभी ग्वालियर की पहचान हुआ करती थी, जो अब अपना लगभग अस्तित्व खो चुकी है।
  6. गौस सूफियों के सत्तारी संप्रदाय के अनुयायी थे। इतिहासकार अजीज अहमद के अनुसार सत्तारी संप्रदाय के सूफी भारतीय योगियों की तरह फल, पत्ती आदि पर रहते थे एवं योगियों के समान आध्यात्मिक व शारीरिक क्रिया (ध्यान, धारणा व समाधि) करते थे। तानसेन ने ग्वालियर नरेश महाराजा मानसिंह के संगीत विद्यालय में शिक्षा प्राप्त की । इसके बाद उन्होंने स्वामी हरिदास से संगीत की शिक्षा ग्रहण की। संगीत में ध्रुपद की शुरूआत का श्रेय तानसेन को ही जाता है। इसके अलावा उन्होंने गूजरी तोड़ी, मियां मल्हार, मियां की सारंग जैसे कई रागों की शुरुआत की।
  • मोहम्मद गौस ने 'गुलजारे अबरार' नामक ग्रंथ की रचना की। तानसेन ने रागमाला, संगीतसार व गणेश स्रोत नामक ग्रंथों की रचना की।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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