लाखा सिंह: Difference between revisions

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Latest revision as of 07:26, 4 October 2021

thumb|250px|लाखा सिंह लाखा सिंह (अंग्रेज़ी: Lakha Singh, जन्म- 2 जनवरी, 1965) भारत के प्रसिद्ध मुक्केबाज़ थे। सन 1990 के दौर में लाखा सिंह अपनी बॉक्सिंग की वजह से जाने जाते थे। साल 1994 उनके लिए बेहद खास था। इसी साल उन्होंने एशियन बॉक्सिंग चैंपिनशिप में सिल्वर मेडल हासिल किया था। लेकिन अब साथी खिलाड़ियों से मिले धोखे और खेल संघों, सरकारों द्वारा नजरअंदाज किए जाने की वजह से लाखा सिंह की जिंदगी बेहद खराब दौर से गुजर रही है। दो साल में तीन अंतरराष्ट्रीय पदक जीतने वाले लाखा सिंह 1996 के अटलांटा ओलिंपिक में भारत के सबसे चमकदार सितारे थे।[1]

कॅरियर

प्रतिभा के धनी लाखा सिंह को भारत की नई पीढ़ी के मुक्केबाजों को ट्रेनिंग देनी चाहिए थी, लेकिन वह गर्दिश में दिन गुजार रहे हैं। लाखा सिंह ने हिरोशिमा एशियाड में 81 किलो की श्रेणी में भारत के लिए कांस्य पदक जीता था। यह सन 1994 की बात है। ऐसे कई पदक इनकी प्रतिभा की कहानी बयान करते हैं। पांच बार राष्ट्रीय चैम्पियन रह चुके लाखा सिंह ने वर्ष 1994 में हुए मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीता और फिर 1995 में ताशकेंत में हुए चैम्पिंशिप में रजत पदक जीता। इस तरह दो साल में उन्होंने देश को लागातार तीन पदक दिलाये थे।[2]

अपने अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शन से इस खिलाड़ी ने 1996 के अटलांटा ओलम्पिक में बड़ी उम्मीद जगाई थी। अलबत्ता एशिया स्तर का अपना प्रदर्शन, ये ओलंपिक में नहीं दिखा पाए। टाइम्स ऑफ़ इंडिया के अनुसार, ओलंपिक में 91 किलो की प्रतिस्पर्धा में लाखा सिंह 17वें स्थान पर रहे। ओलम्पिक में अच्छा न कर पाने के बावजूद लाखा सिंह 90 के दशक में भारत के लिए बड़ी उम्मीद रहे।

अर्श से फर्श तक की यात्रा

thumb|250px|लाखा सिंह लाखा सिंह ने भारतीय सेना की नौकरी महज 19 साल में ज्वाइन कर ली थी। यह सिक्ख दंगे के लिए कुख्यात वर्ष 1984 था। सन 1994-1995 इनके जीवन का स्वर्ण काल था। वर्ष 1996 में हुए ओलम्पिक के दो साल बाद जो इनकी जिंदगी की गाड़ी पटरी से उतरनी शुरू हुई वो आज तक वापिस नहीं आ पाई और इसके लिए वे आज तक संघर्ष किये जा रहे हैं।

1998 की बात है। लाखा सिंह और एक और मुक्केबाज़ देबेन्द्र थापा को विश्व मिलिट्री बॉक्सिंग चैम्पंशिप में भाग लेने जाना था। ये दोनों टेक्सास हवाई अड्डे पर छूट गए और फिर गायब हो गए। भारतीय सेना ने इनको भगोड़ा घोषित कर दिया। लोगों का यह मानना था कि ये दोनों अमेरिका में प्रोफेशनल मुक्केबाजी में अपना कॅरियर बनाना चाहते थे। थापा तो बाद में कहीं छोटे स्तर पर खेलते हुए भी नज़र आये पर लाखा सिंह के बारे में ऐसा कोई सबूत नहीं है। इसके बारे में लाखा सिंह कहते हैं कि यह सही है कि हम लोग टेक्सास हवाई अड्डे पर रुक गए। मैं थापा के साथ था और उसने बताया कि उसे कुछ दोस्तों से मिलना है। हम लोगों ने गाड़ी में ही कुछ शराब पी। मेरा भरोसा कीजिये कि उसके बाद मैं थापा से कभी नहीं मिला। जब मेरी नींद खुली तो मैंने पाया कि मैं एक कमरे में बंद हूँ। उसी कमरे में मुझे करीब एक महीने तक बंद रखा गया। लाखा सिंह ने टीओआई को बताया।[2]

इनके अनुसार एक महीने बाद इन्हें वहाँ से भी हटा दिया गया। जगह अजनबी थी, इनके पास पैसे नहीं थे और वीजा भी ख़त्म हो चुका था। वह आगे बताते हैं कि उसके बाद ये कुछ एशियाई लोगों से मिले, जिन्होंने ने इन्हें कैलिफ़ोर्निया पहुँचने में मदद की। वहाँ इन्होंने गैस स्टेशन, रेस्तरां और अन्य ऐसे ही स्थानों पर मजदूरी की। लगभग आठ साल लगे इन्हें इतना पैसा जमा करने में, जिससे ये भारत वापस आ सकें। इसमें भारतीय दूतावास ने काफी मदद की। देबेन्द्र थापा के बारे में लाखा सिंह बताते हैं कि वह फिर कभी नहीं मिला और इन्हें यह नहीं मालूम कि वह अमेरिका में प्रोफेशनल मुक्केबाजी में कॅरियर बनाने चला गया।

किसी तरह 2006 में लाखा सिंह अपने गाँव हलवारा पहुंचे। यह लुधियाना में पड़ता है। आने की ख़ुशी थी, पर वह क्षणभंगुर साबित हुई। गाँव आने पर पता चला कि उनको सेना ने भगोड़ा घोषित कर दिया है। उनका कहना है कि बिना कोई जांच पड़ताल किये सेना ने ऐसा कर दिया। उन्होंने फिर भारतीय सेना को कई पत्र लिखे पर कोई जवाब नहीं आया। लाखा सिंह कहते हैं कि मैं एक अजनबी देश में फंसा रहा। वह भी बिना कोई गलती किये। कोई मेरी मदद करने नहीं आया और जब मैं संघर्ष करते हुए वापस आया तो मेरे अपने लोगों ने मुझ पर कई आरोप मढ़ दिए, जो मैंने कभी किया ही नहीं। बहरहाल एक चैम्पियन बॉक्सर जिसने देश के लिए कई सारी उपलब्धियां बटोरीं, आज जीने के लिए संघर्ष कर रहा है।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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