जद्यपि मनुज दनुज कुल घालक

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जद्यपि मनुज दनुज कुल घालक
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड अरण्यकाण्ड
चौपाई

जद्यपि मनुज दनुज कुल घालक। मुनि पालक खल सालक बालक॥
जौं न होइ बल घर फिरि जाहू। समर बिमुख मैं हतउँ न काहू॥6॥

भावार्थ

यद्यपि हम मनुष्य हैं, परन्तु दैत्यकुल का नाश करने वाले और मुनियों की रक्षा करने वाले हैं, हम बालक हैं, परन्तु दुष्टों को दण्ड देने वाले। यदि बल न हो तो घर लौट जाओ। संग्राम में पीठ दिखाने वाले किसी को मैं नहीं मारता॥6॥



left|30px|link=हम छत्री मृगया बन करहीं|पीछे जाएँ जद्यपि मनुज दनुज कुल घालक right|30px|link=रन चढ़ि करिअ कपट चतुराई|आगे जाएँ


चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।


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