पर्यूषण पर्व

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पर्यूषण पर्व भगवान महावीर के अनुयायियों तथा जैन धर्मावलंबियों द्वारा भाद्रपद मास में मनाया जाता है। आठ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में मनुष्य, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि योग जैसी साधना तप-जप के साथ करके मानव जीवन को सार्थक बनाता है। पर्यूषण पर्व को मनाने का मुख्य उद्देश्य आत्मा को शुद्ध करने के लिए आवश्यक उपक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना होता है। पर्यावरण का शुद्धिकरण इसके लिए अनिवार्य बताया गया है।

पर्व समय

जैन धर्म में मुख्यतः दो सम्प्रदाय हैं- श्वेताम्बर संप्रदाय और दिगंबर संप्रदाय। श्वेताम्बर संप्रदाय को मानने वाले लोग पर्यूषण पर्व को भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की पंचमी तक मनाते हैं, जबकि दिगंबर संप्रदाय के लोग इस महापर्व को भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी से चतुर्दशी तक मनाते हैं। पर्यूषण पर्व में अनुयायी जैन तीर्थंकरों की पूजा, सेवा और स्मरण करते हैं। पर्व में शामिल होने वाले लोग आठ दिनों के लिए उपवास रखने का प्रण करते हैं, इसे 'अटाई' कहा जाता है। आठ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में एक दिन स्वप्न दर्शन होता है, जिसमें उत्सव के साथ 'त्रिशाला देवी' की पूजा तथा आराधना आदि भी की जाती है।[1]

उद्देश्य

क्षमा-याचना के इस महापर्व का मुख्य उद्धेश्य तप और बल को विकसित कर सारी सांसारिक प्रवृत्तियों को अहिंसा से भर देना होता है। पर्यूषण पर्व के इस शुभ अवसर पर जैन संत और विद्वान समाज को पर्यूषण पर्व की दशधर्मी शिक्षा को अनुसरण करने की प्रेरणा प्रदान करते हैं, क्योंकि महापर्व की इस शिक्षाओं के अंतर्गत अनुयायी उत्तम मानवीय धर्म को हृदय की मधुरता और स्वभाव की विनम्रता के माध्यम से अनुभव करता है और उसे स्वीकार करता है। इस पर्व के मौके पर जिनालयों और जैन मंदिरों में सुबह प्रवचनों और शाम के समय विविध धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस समस्त कार्यक्रम में काफ़ी संख्यां में जैन धर्मावलम्बी उपस्थित होते हैं।

शिक्षा

मानव की सोई हुई अन्त:चेतना को जागृत करने, आध्यात्मिक ज्ञान के प्रचार, सामाजिक सद्भावना एवं सर्व-धर्म समभाव के कथन को बल प्रदान करने के लिए पर्यूषण पर्व मनाया जाता है। यह पर्व धर्म के साथ राष्ट्रीय एकता तथा मानव धर्म का पाठ पढ़ाता है। यह पर्व सिखाता है कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष आदि की प्राप्ति में ज्ञान व भक्ति के साथ सद्भावना का होना अनिवार्य है। भगवान भक्त की भक्ति को देखता है, उसकी अमीरी-गरीबी या सुख-समृद्धि को नहीं। जैन सम्प्रदाय का यह पर्व हर दृष्टीकोण से गर्व करने लायक़ है, क्योंकि इस दौरान गुरु भगवंतो के मुखारविद से अमृतवाणी का श्रवण होता है, जो हमारे जीवन में ज्ञान व धर्म के अंकुर को परिपक्व करता है।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पर्यूषण पर्व (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 15 मार्च, 2012।
  2. मनुष्यत्व का पाठ पढ़ाता है- पर्यूषण पर्व (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 15 मार्च, 2012।

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