कांगो नदी

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कांगो नदी अफ़्रीका की प्रमुख नदी है। इसे 'जेयरे नदी' के नाम से भी जाना जाता है। कांगो नदी विश्व की समस्त नदियों में, दक्षिणी अमरीका की अमेज़न को छोड़कर, सबसे अधिक लंबी है। इसकी संपूर्ण लंबाई 2,900 मील है। इसका प्रवाह क्षेत्र 14,25,000 वर्ग मील है। नदी अपने मुहाने पर सात मील चौड़ा रूपधारण कर समुद्र में गिरती है। यह समुद्र में प्रति सेकेंड 20 लाख घन फुट कीचड़ युक्त पानी गिराती है, जो संपूर्ण मिसीसिपी नदी के औसत तक चौगुना है।

ऐतिहासिक तथ्य

भूगर्भीय तत्वों के आधार पर यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि यह नदी सुदूर भूतकाल में उत्तर की ओर, जहाँ पर इस समय उजाड़ सहारा रेगिस्तान है, बहती थी। नदी का वर्तमान मुहाना नवीन प्रतीत होता है। दीर्घ काल तक यह नदी यात्रियों के लिए पहेली बनी रही। सर्वप्रथम इसके मुहाने पर सन 1482 ई. में डायगोकाओ नामक पुर्तग़ाली यात्री का आगमन हुआ तथा उसने यहाँ पर एक स्तंभ खड़ा किया। तब से इस नदी को 'रीओ डी पडराओ' के नाम से पुकारा जाने लगा। कालांतर में पुर्तग़ाली अन्वेषकों ने इसको 'ज़ैर' नाम प्रदान किया। अंतिम तथा विश्वविख्यात नाम 'कांगो' पड़ा।

उद्गम तथा विस्तार

कांगो नदी का कीचड़ युक्त पानी समुद्री किनारे से 100 मील दूर तक तथा 4,000 फुट की गहराई तक समुद्री जल से अलग रूप में स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। यह नदी मध्य अफ्रीका के 4,650 फुट की ऊँचाई से निकलकर पश्चिम दिशा में 2,900 मील की यात्रा समाप्त करके समुद्र में गिरती हैं। अपने यात्रा पथ में यह भारत की गंगा नदी की तरह कई नामों से पुकारी जाती है, उदाहरणार्थ- उत्तरी रोडेशिया में 'चंबेज़ी' तदुपरांत 'लूआ पूला' नाम से विख्यात है। यह नदी 200 फुट की ऊँचाई से गिरकर स्टैनली जलप्रपात का सृजन करती है। इसके पश्चात्‌ यह बहुत बड़ी नदी का रूप धारण कर लेती है, जो 980 मील चंद्राकार रूप में बहती हुई भूमध्य रेखा को दो बार आर-पार करती है।

सहायक नदियाँ तथा जीव-जंतु

कांगो की सहायक नदियों में 'कसाई' तथा 'उंबागी' विशेष उल्लेखनीय हैं। इस नदी में 4,000 लघु द्वीप हैं। इसमें छोटी-छोटी वाष्पचालित नौकाएँ भी चलाई जाती हैं। इसका निचला जलप्रवाह 28 स्थलों पर विघटित होकर जलशक्ति उत्पादक स्थानों का सृजन करता है। यहाँ पर शिकार खेलने योग्य भयंकर जंगली जानवर पाए जाते हैं, क्योंकि इस नदी का अधिकांश मार्ग घने तथा अभेद्य जंगलों से घिरा हुआ है। इसमें सैकड़ों जातियों की मछलियाँ मिलती हैं तथा तटीय प्रदेश में दुर्लभ कीड़े-मकोड़ों की प्राप्ति होती है।


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