पयोष्णी नदी

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पयोष्णी नदी विन्ध्य पर्वत से दक्षिण की ओर प्रवाहित होने वाली नदी है। यह नदी अनेक ग्रामों व नगरों को सिंचित करती हुई गोदावरी में जा मिलती है। वर्तमान में इसे वेनगंगा के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि सृष्टि के प्रारम्भ में जब ब्रह्मा यज्ञ कर रहे थे, तो उनके प्रणीता पात्र के गर्म जल से इस 'पयोष्णी नदी' की उत्पत्ति हुई।

पौराणिक उल्लेख

इस नदी के किनारे राजर्षि गय ने सप्त यज्ञ अनुष्ठान किए थे। इन्द्र देवगण तथा प्रजापति ने भी भारी दक्षिणा वाले यज्ञ किए। राजर्षि नृग ने भी यहाँ यज्ञ सम्पन्न किए, जिसमें मार्कण्डेय सम्मिलित हुए थे। इस यज्ञ में इन्द्र ने सोमरस पान किया। द्विज प्रभूत दक्षिणाओं से अभिभूत हुए, इसीलिए इसे 'नृगसरित' भी कहते हैं।

अन्य मत

अपने वनवासकाल में पांडव यहाँ आए और पयोष्णी में स्नान कर धन्य होकर पुण्य लाभ को प्राप्त हुए। संजय ने विश्वमाता रूप में पयोष्णी का दो बार उल्लेख किया है। यह नदी पांडुरंग वामन काणे के अनुसार विंध्याचल से निकलती है। डे इसे वर्धा के निकट वेनगंगा का प्रवाह मानते हैं। हंटर और डे ने इसे बरार की गाविलगढ़ पहाड़ियों से प्रवहमान हो ताप्ती नदी में सम्मिलन की बात कही है। नल-दमयंती प्रसंग में पयोष्णी नदी का उल्लेख आया है। ऐसी मान्यता है कि इसमें स्नान से पितृ-देवार्चना से सहस्र गौ दान फल और इन्द्रलोक की प्राप्ति होती है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 476 |

  1. महाभारत, वनपर्व, 121, 86, 120, 121

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