गंडक नदी
[[चित्र:Gandak-River.jpg|thumb|250px|गंडक नदी, नेपाल]] गंडक नदी मध्य नेपाल और उत्तरी भारत में स्थित है। गंडक नदी को नारायणी नदी भी कहलाती है।
- गंडक नदी को गंडकी नदी भी कहा जाता है। महाभारत सभा पर्व [1]; 4-5 में इसे गंडक कहा गया है- 'तत: स गंडकाञ्नछूरोविदेहान् भरतर्षभ:, विजित्याल्पेन कालेनदशार्णानजयत प्रभु:'। यहाँ प्रसंगानुसार गंडक देश को विदेह या वर्तमान मिथिला के निकट बताया गया प्रतीत होता है।
- यह काली और त्रिशूली नदियों के संगम से बनी है, जो नेपाल की उच्च हिमालय पर्वतश्रेणी से निकलती है।
- इनके संगम स्थल से भारतीय सीमा तक नदी को नारायणी के नाम से जाना जाता है।
- यह दक्षिण—पश्चिम दिशा में भारत की ओर बहती है और फिर उत्तर प्रदेश—बिहार राज्य सीमा के साथ व गंगा के मैदान में दक्षिण—पूर्व दिशा में बहती है।
- गंडक नदी 765 किलोमीटर लम्बे घुमावदार रास्ते से गुज़रकर पटना के सामने गंगा नदी में मिल जाती है।
- बूढ़ी गंडक नदी एक पुरानी जलधारा है, जो गंडक के पूर्व में इसके समानांतर बहती है।
- यह मुंगेर के पूर्वोत्तर में गंगा से जा मिलती है।
- सदानीरा जिसका उल्लेख प्राचीन साहित्य में अनेक बार आया है संभवत: गंडकी ही है[2] किंतु महाभारत सभा पर्व [3] में सदानीरा और गंडकी दोनों का एकत्र ना-मोल्लेख है जिससे सदानीरा भिन्न नदी होनी चाहिए- 'गंडकींच महाशोणां सदानीरां तथैव थ, तीर्थरूप में वर्णन किया गया है- 'गंडकीं तु सभासाद्य सर्वतीर्थ जलोद्भवाम् वाजपेयमवाप्नोति सूर्यलोकं च गच्छति'।
- पार्जिटर के अनुसार सदानीरा राप्ती है। सदानीरा कोसल और विदेह की सीमा पर बहती थी। गंडकी का एक नाम मही भी कहा गया है।
- यूनानी भूगोलवेत्ताओं ने इसे कोंडोचाटिज कहा है। विसेंट स्मिथ ने महापरिनिव्वान सुत्तंत में उल्लिखित हिरण्यवती का अभिज्ञान गंडक से किया है।
- यह नदी मल्लों की राजधानी के उद्यान शालवन के पास बहती थी। बुद्धचरित [4] के अनुसार कुशीनगर में निर्वाण से पूर्व तथागत ने हिरण्यवती नदी में स्थान किया था।
- इसमें पूर्व कुशीनगर आते समय बुद्ध ने इरावती या अचिरवती नदी को पार किया था। इरावती राप्ती का ही नाम है।
- विसेंट स्मिथ ने कुशीनगर की स्थिति नेपाल में राप्ती और गंडक के संगम पर मानी थी [5] किंतु कुशीनगर का अभिज्ञान अब कसिया से निश्चित हो जाने पर हिरण्यवती को गोरखपुर ज़िले की राप्ती या उसकी कोई उपशाला मानना पड़ेगा न कि गंडकी।
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