विलियम जेम्स

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विलियम जेम्स (जन्म- 11 जनवरी, 1842, न्यूयार्क; मृत्यु- 26 अगस्त, 1910) प्रसिद्ध अमरीकी दार्शनिक तथा मनोवैज्ञानिक था। उसका भाई हेनरी जेम्स एक प्रख्यात उपन्यासकार था। 1890 ई. में विलियम जेम्स की पुस्तक 'प्रिंसिपिल्स ऑफ़ साइकॉलाजी' प्रकाशित हुई थी, जिसने मनोविज्ञान के क्षेत्र में क्रांति-सी मचा दी और जेम्स को उसी एक पुस्तक से विश्व में ख्याति मिल गई। आकर्षक लेखन शैली और अभिव्यक्ति की कुशलता के लिये विलियम जेम्स विख्यात है।

जन्म तथा शिक्षा

प्रसिद्ध दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक विलियम जेन्म का जन्म 11 जनवरी, 1842 को न्यूयार्क में हुआ था। इसका भाई हेनरी जेम्स एक प्रख्यात उपन्यासकार था। हार्वर्ड में जेम्स ने शरीर विज्ञान का अध्ययन किया और वहीं 1872 से 1907 ई. तक क्रमश: शरीर विज्ञान, मनोविज्ञान और दर्शन का प्राध्यापक रहा। उसने 1899 से 1901 तक एडिनबरा विश्वविद्यालय में प्राकृतिक धर्म पर और 1908 में ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में दर्शन पर व्याख्यान दिए।

लेखन कार्य

वर्ष 1890 ई. में विलियम जेम्स की पुस्तक 'प्रिंसिपिल्स ऑफ़ साइकॉलाजी' प्रकाशित हुई, जिसने मनोविज्ञान के क्षेत्र में क्रांति मचा दी, और जेम्स को उसी एक पुस्तक से जागतिक ख्याति मिल गई। अपनी अन्य रचनाओं में उसने दर्शन तथा धर्म की समस्याओं को सुलझाने में अपनी मनोवैज्ञानिक मान्यताओं का उपयोग किया और उनका समाधान उसने अपने 'फलानुमेयप्रामाणवाद'[1] और 'आधारभूत अनुभववाद'[2] में पाया। जेम्स ने 'ज्ञान' को बृहत्तर व्यावहारिक स्थिति का जिससे व्यक्ति स्वयं को संसार में प्रतिष्ठित करता है, भाग मानते हुए 'ज्ञाता' और 'ज्ञेय' को जीवी[3] और परिवेश[4] के रूप में स्थापित किया है। इस प्रकार सत्य कोई पूर्ववृत्त वास्तविकता[5] नहीं है, अपितु वह प्रत्यय की व्यावहारिक सफलता के अंशों पर आधारित है। सभी बौद्धिक क्रियाओं का महत्व उनकी व्यावहारिक उद्देश्यों की पूर्ति की क्षमता में निहित है।

मनोवैज्ञानिक सिद्धांत

विलियम जेम्स ने आधारभूत अनुभववाद को पहले मनोवैज्ञानिक सिद्धांत के रूप में प्रस्तुत किया। लॉक और बर्कले के मतों से भिन्न उसकी मान्यता थी कि चेतना की परिवर्तनशील स्थितियाँ परस्पर संबंधित रहती हैं; तदनुसार समग्र अनुभव की स्थितियों में संबंध स्थापित हो जाता है; मस्तिष्क आदि कोई बाह्य शक्ति उसमें सहायक नहीं होती। मस्तिष्क प्रत्यक्ष अनुभव की समग्रता में भेद करता है। फलानुमेय प्रामाण्यवाद और आधारभूत अनुभववाद पर ही विलियम जेम्स की धार्मिक मान्यताएँ आघृत हैं। फलानुमेय प्रामाण्यवाद सत्य की अपेक्षा धार्मिक विश्वासों की व्याख्या में अधिक सहायक था, क्योंकि विश्वास प्राय: व्यावहारिक होते हैं। यहाँ तक कि तर्कों के प्रमाण के अभाव में भी मान्य होते हैं। किंतु परिणामवादी दृष्टिकोण से सत्य की परिभाषा स्थिर करना संदिग्ध है। 'द विल टु बिलीव' में विलियम जेम्स ने अंत:करण के या संवेगजन्य प्रमाणों पर बल दिया है और सिद्ध किया है कि उद्देश्य और संकल्प ही व्यक्ति के दृष्टिकोण का निर्माण करते हैं।

धर्मदर्शन

'द वेराइटीज़ ऑफ़ रिलीजस एक्सपीरियेंस' में विलियम जेम्स ने व्यक्ति को निष्क्रिय और शक्तिहीन दिखलाया है तथा यह भी प्रदर्शित किया है कि उसकी रक्षा कोई बाह्य शक्ति करती है। उसके अनुभववाद से धार्मिक अनुभूति की व्याख्या इसलिये असंभव है कि इन अनुभूतियों का व्यक्ति के अवचेनत से सीधा संबंध होता है। जेम्स के धर्मदर्शन में तीन बातें मुख्य हैं-

  1. अंत:करण या संवेगजन्य प्रमाणों की सत्यता पर बल
  2. धर्म की संदिग्ध सर्वोत्कृष्टता और ईश्वर की सीमितता का आग्रह
  3. बाह्य अनुभव को यथावत्‌ ग्रहण करने की आतुरता

प्रकाशित पुस्तकें

आकर्षक लेखन शैली और अभिव्यक्ति की कुशलता के लिये विलियम जेम्स विख्यात है। उसकी अन्य प्रकाशित पुस्तकें निम्नलिखित हैं-

  1. 'साइकॉलजी' (1892)
  2. ब्रीफर कोर्स' (1892)
  3. 'ह्यूमन इम्मारटलिटी' (1898)
  4. 'टाक्स टु टीचर्स आन साइकॉलजी' (1899)
  5. 'प्राग्मैटिज्म' (1907)
  6. 'अ प्ल्यूरलिस्टिक यूनिवर्स' (1909)
  7. 'द मीनिंग ऑव ट्रूथ (1909)
  8. 'मेमोरीज एंड स्टडीज' (1911)
  9. 'सम प्राब्लेम्स ऑव फिलासफी' (1911)
  10. 'एसेज इन रेडिकल एंपिरिसिज्म' (1912)


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. Pragmatism
  2. Radical Empiricism
  3. Organism
  4. Environment
  5. Antecedent Reality

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