ससि कर सम सुनि गिरा तुम्हारी

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ससि कर सम सुनि गिरा तुम्हारी
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
भाषा अवधी भाषा
शैली सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड बालकाण्ड
चौपाई

ससि कर सम सुनि गिरा तुम्हारी। मिटा मोह सरदातप भारी॥
तुम्ह कृपाल सबु संसउ हरेऊ। राम स्वरूप जानि मोहि परेऊ॥

भावार्थ-

आपकी चंद्रमा की किरणों के समान शीतल वाणी सुनकर मेरा अज्ञानरूपी शरद-ऋतु (क्वार) की धूप का भारी ताप मिट गया। हे कृपालु! आपने मेरा सब संदेह हर लिया, अब राम का यथार्थ स्वरूप मेरी समझ में आ गया।


left|30px|link=पुनि पुनि प्रभु पद कमल|पीछे जाएँ ससि कर सम सुनि गिरा तुम्हारी right|30px|link=नाथ कृपाँ अब गयउ बिषादा|आगे जाएँ

चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।



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