जटा मुकुट सीसनि सुभग

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जटा मुकुट सीसनि सुभग
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड अयोध्या काण्ड
चौपाई

जटा मुकुट सीसनि सुभग उर भुज नयन बिसाल।
सरद परब बिधु बदन बर लसत स्वेद कन जाल॥115॥

दोहा

उनके सिरों पर सुंदर जटाओं के मुकुट हैं, वक्षः स्थल, भुजा और नेत्र विशाल हैं और शरद पूर्णिमा के चन्द्रमा के समान सुंदर मुखों पर पसीने की बूँदों का समूह शोभित हो रहा है॥115॥


left|30px|link=दामिनि बरन लखन सुठि नीके|पीछे जाएँ जटा मुकुट सीसनि सुभग right|30px|link=बरनि न जाइ मनोहर जोरी|आगे जाएँ


दोहा - मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।




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