प्रभुहि चितइ पुनि चितव

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प्रभुहि चितइ पुनि चितव
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
भाषा अवधी भाषा
शैली सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड बालकाण्ड
चौपाई

प्रभुहि चितइ पुनि चितव महि राजत लोचन लोल।
खेलत मनसिज मीन जुग जनु बिधु मंडल डोल॥ 258॥

भावार्थ-

प्रभु राम को देखकर फिर पृथ्वी की ओर देखती हुई सीता के चंचल नेत्र इस प्रकार शोभित हो रहे हैं, मानो चंद्रमंडलरूपी डोल में कामदेव की दो मछलियाँ खेल रही हों॥ 258॥


left|30px|link=निज जड़ता लोगन्ह पर डारी|पीछे जाएँ प्रभुहि चितइ पुनि चितव right|30px|link=गिरा अलिनि मुख पंकज रोकी|आगे जाएँ

चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।


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