राम बिरह सागर महँ

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रामचरितमानस सप्तम सोपान (उत्तर काण्ड) : भरत-हनुमान मिलन

राम बिरह सागर महँ
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड उत्तरकाण्ड
दोहा

राम बिरह सागर महँ भरत मगन मन होत।
बिप्र रूप धरि पवनसुत आइ गयउ जनु पोत॥1क॥

भावार्थ

श्रीराम जी के विरह समुद्र में भरत जी का मन डूब रहा था, उसी समय पवनपुत्र हनुमान जी ब्राह्मण का रूप धरकर इस प्रकार आ गए, मानो (उन्हें डूबने से बचाने के लिए) नाव आ गई हो॥1 (क)॥


left|30px|link=मोरे जियँ भरोस दृढ़ सोई|पीछे जाएँ राम बिरह सागर महँ right|30px|link=बैठे देखि कुसासन|आगे जाएँ

दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।



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