पंडित नेहरू और अन्य महापुरुष -रामधारी सिंह दिनकर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 08:23, 21 May 2017 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replacement - "संगृहीत" to "संग्रहीत")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search
पंडित नेहरू और अन्य महापुरुष -रामधारी सिंह दिनकर
कवि रामधारी सिंह दिनकर
मूल शीर्षक 'पंडित नेहरू और अन्य महापुरुष'
प्रकाशक लोकभारती प्रकाशन
प्रकाशन तिथि 1 जनवरी, 2008
ISBN 978-81-8031-331
देश भारत
भाषा हिंदी
विधा लेख-निबन्ध
मुखपृष्ठ रचना सजिल्द
टिप्पणी दिनकरजी की यह पुस्तक पंडित जवाहरलाल नेहरू और तीन अन्य महापुरुषों- स्वामी विवेकानन्द, महर्षि रमण और महात्मा गांधी के विषय में विशेष जानकारी देती है।

पंडित नेहरू और अन्य महापुरुष राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की कृतियों में से एक है। यह पुस्तक पंडित जवाहरलाल नेहरू और तीन अन्य महापुरुषों- स्वामी विवेकानन्द, महर्षि रमण और महात्मा गांधी के विषय में विशेष जानकारी देती है। राष्ट्रकवि दिनकर पंडित जवाहरलाल नेहरू के संस्मरण में लिखते हैं कि- "क्या पंडित जवाहरलाल नेहरू तानाशाह थे?" दिनकर जी नेहरू जी के जीवन दर्शन, गांधी और नेहरू के आपसी रिश्ते और भारतीय एकता के लिए पंडित जी के प्रयासों को हमारे सामने लाते हैं।

पुस्तक अंश

इस पुस्तक में दिनकर जी के तीन रेडियो-रूपकों को भी संग्रहीत किया गया है, जो क्रमश: स्वामी विवेकानन्द, महर्षि रमण और महात्मा गांधी जैसे महापुरुषों के जीवन को आधार बनाकर लिखे गए हैं। इन रूपकों में न केवल उनके प्रेरक जीवन की झलकियाँ हैं, बल्कि उनमें इन महापुरुषों का जीवन-दर्शन भी समाहित है। ये रेडियो-रूपक जितने श्रवणीय हैं, उतने ही पठनीय भी। एक नई योजना के अन्तर्गत राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की वे पुस्तकें, जिनका स्वामित्व उनके पौत्र अरविन्द कुमार सिंह के पास है, नए ढंग से प्रकाशित की गई हैं।

दिनकर जी ने कविता के साथ-साथ गद्य साहित्य की भी प्रचुर मात्रा में रचना की है। स्वभावत: वे पुस्तकें गद्य की भी हैं और पद्य की भी। गद्य की पुस्तकों में से दो पुस्तकें- 'शुद्ध कविता की खोज' और 'चेतना की शिखा' को यथावत् प्रकाशित किया गया है। सिर्फ उनके नाम में कारणवश परिवर्तन किया गया है। ‘शुद्ध कविता की खोज’ का नाम इस पुस्तक के पहले निबन्ध के आधार पर रखा गया है- ‘कविता और शुद्ध कविता’ और ‘चेतना की शिखा’ का नाम उसके पहले निबन्ध के आधार पर 'श्री अरविन्द : मेरी दृष्टि में'। इस नाम परिवर्तन से पुस्तक की विषय-वस्तु का परिचय प्राप्त करने में अधिक स्पष्टता आ जाती है।

रेडियो रूपक

‘पंडित नेहरू और अन्य महापुरुष’ नामक पुस्तक में भी रामधारी सिंह 'दिनकर' की ‘लोकदेव नेहरू’ और ‘हे राम’ नामक दो पुस्तकें संकलित हैं। दूसरी पुस्तक में तीन महापुरुषों- स्वामी विवेकानन्द, महर्षि रमण और महात्मा गांधी पर दिनकरजी के तीन रेडियो-रूपक संग्रहीत हैं, लेकिन उनकी आत्मा निबन्ध की है। कारण यह है कि उनमें उक्त महापुरुषों के विचार-दर्शन से ही श्रोताओं और पाठकों को परिचित कराने का प्रयास किया गया है। इसीलिए इन्हें साथ रखा गया है। ‘हे राम’ नामक पुस्तक संयुक्त करने के कारण ही संकलन के लिए नया नाम देना पड़ा, लेकिन पंडित नेहरू की प्रधानता के कारण उसमें उनके नाम का उल्लेख आवश्य माना गया है। ‘स्मरणांजलि’ नामक पुस्तक में भी दिनकरजी की मूल पुस्तक ‘मेरी यात्राएँ’ के चार निबन्ध संयुक्त किए गए हैं, क्योंकि यात्रा-वृत्तांत भी एक तरह से संस्मरण ही है। पहले उसे यात्रा-संस्मरण कहा भी जाता था। ‘स्मरणांजलि’ वस्तुत: दिनकरजी की पुस्तक ‘संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ’ का नया नाम है। इसमें सिर्फ निबन्धों को नई तरतीब दी गई है और उसमें यथास्थान ‘साहित्यमुखी’ से लेकर सिर्फ एक निबन्ध जोड़ा गया है- ‘निराला जी को श्रद्धांजलि’।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः