भरथरी गायन

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भरथरी गायन एक छत्तीसगढ़ की लोकगाथा है। सांरण या एकतारा के साथ भरथरी गाते योगियों को देखा जाता है। वास्तव में छत्तीसगढ़ में जो भरथरी का गीत गातें है^ ,वे 'योगी' कहलाते हैं। गीत में भी अपने आप को वे योगी कहते हैं। छत्तीसगढ़ी भरथरी किसी जाति विशेष का गीत नहीं है।

  • छत्तीसगढ़ में भरथरी की सांगिति का प्रतिष्ठा है। सुरुज बाई खाण्डे भरथरी गायन के लिए प्रसिद्ध हैं।
  • लोक जीवन के विकट यथार्थ एवं सहज मान्यता ने जिन भरथरी को जन्म दिया और वह अनेक अर्थो में परम्परा लोक शक्ति की अधीन प्रयोग शीलता और विलक्षण क्षमता का परिमाण है।
  • शुरू में भरथरी एक अकेला व्यक्ति गाया करता था। वह खंजरी बजाकर गाता था। बाद में वाद्यों के साथ भरथरी का गायन होने लगा। वाद्यों में तबला, हारमोनियम, मंजीरा के साथ-साथ बेंजो भी था। धीरे-धीरे इसका रूप बदलता गया और भरथरी योगी गाना गाते और साथ-साथ नाचते भी हैं। ये बहुत स्वाभाविक है कि गीत के साथ नृत्य भी शामिल हो गया।


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