मीनाक्षी मेधी

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मीनाक्षी मेधी (अंग्रेज़ी: Meenakshi Mathi) शास्त्रीय नृत्यांगना हैं। सत्तरिया नृत्य असम का लोकप्रिय शास्त्रीय नृत्य है। वहां हर घर की लड़कियां इसे सीखतीं हैं। असम में कला, साहित्य और संस्कृति के प्रति जनमानस में गहरी अभिरुचि है। यह तथ्य भी महत्त्वपूर्ण है कि कुछ कलाकार अपने प्रयासों से सत्तरीय नृत्य को असम के अलावा, देश के सभी प्रदेशों के लोगों से इसे परिचित करवाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। इसमें एक नाम नवोदित नृत्यांगना मीनाक्षी मेधी का भी है।

परिचय

मीनाक्षी मेधी ने सत्तरिया नृत्य की आरंभिक शिक्षा जीवनजीत दत्ता से ग्रहण की। इसके बाद वह माजुलि के उत्तर कमलाबाड़ी सत्र से जुड़ीं। उन्होंने डॉ. जगन्नाथ महंत और हरिचरण भूइयां बरबायन से नृत्य सीखा। इस दौरान मीनाक्षी मेधी को आभास हुआ कि सत्तरिया नृत्य सिर्फ साधारण अंग, हस्त या पद संचालन नहीं है, बल्कि यह पूरा दर्शनशास्त्र है। इसी क्रम में उन्होंने दर्शनशास्त्र से अपनी स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की और फिर दर्शनशास्त्र की गहराइयों वाली भावनाओं से सत्तरिया नृत्य की बारीकियों को देखना शुरू किया।[1]

मीनाक्षी मेधी के अनुसार, एक सत्तरिया नृत्यांगना को लगभग सात साल तक नृत्य सीखने के बाद पारंगत माना जाता है। लेकिन, मुझे लगता है कि मैं सत्तरिया नृत्य में विशारद की उपाधि पाकर भी अभी सीख ही रही हूं। सत्तरिया नृत्य में भक्ति और अध्यात्म का भाव प्रधान है। मुझे लगता है कि किसी भी शास्त्रीय नृत्य को सीखना तभी सफल माना जा सकता है, जब आप उसे पूरे समर्पण और लगन से सीखते हैं। हमारा नृत्य भगवान को समर्पित होता है। ईश्वर यानी आत्मा यानी हम स्वयं अर्थात नृत्य सीखना, दरअसल खुद से परिचित होना है। आप पेशेवर नर्तक बनें या न बनें इससे फर्क नहीं पड़ता है, न ही आपको मंच पर प्रस्तुति देने के लिए उतावला होने की जरूरत है। जरूरत है तो नृत्य के जरिए अपने साहित्य और संस्कृति से गहराई से जुड़ने और उससे परिचित होने की।

भरतनाट्यम व सत्तरिया नृत्यांगना

नृत्यांगना मीनाक्षी मेधी ने भरतनाट्यम और सत्तरिया दोनों नृत्य सीखे हैं। वह कहती हैं कि जिस तरह भरतनाट्यम में अरईमंडी महत्त्वपूर्ण भंगिमा है, वैसे ही सत्तरिया नृत्य में ओरा है। भरतनाट्यम में हम लास्य और तांडव भावों को प्रधानता देते हैं, वहीं इस नृत्य शैली में प्रकृति और पुरुष हैं। शंकरदेव जी ने अंकीय भावना की शुरुआत की। इसमें नृत्य नाटिका शैली प्रचलित थी। माधव देव ने इसे ही परिष्कृत करके सत्तरिया नृत्य के ओजापाली, अभिनय, हस्तकों, चारी भेद, पद संचालन कोमल और सौम्य हैं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 सत्रीय नृत्य अनंत सागर है (हिंदी) jansatta.com। अभिगमन तिथि: 24 सितम्बर, 2021।

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