Difference between revisions of "बांके बिहारी मन्दिर"

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'''बांके बिहारी मंदिर''' [[मथुरा|मथुरा ज़िले]] के [[वृंदावन|वृंदावनधाम]] में रमण रेती पर स्थित है। यह [[भारत]] के प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। 'बांके बिहारी' [[कृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]] का ही एक रूप है, जो इसमें प्रदर्शित किया गया है। श्रीधाम [[वृन्दावन]] एक ऐसी पावन भूमि है, जिस भूमि पर आने मात्र से ही सभी पापों का नाश हो जाता है। ऐसा आख़िर कौन व्यक्ति होगा, जो इस पवित्र भूमि पर आना नहीं चाहेगा तथा श्री बाँके बिहारी जी के दर्शन कर अपने को कृतार्थ करना नहीं चाहेगा। यह मन्दिर श्री वृन्दावन धाम के एक सुन्दर इलाके में स्थित है। कहा जाता है कि इस मन्दिर का निर्माण [[स्वामी हरिदास|स्वामी श्री हरिदास जी]] के वंशजोंं के सामूहिक प्रयास से संवत 1921 के लगभग किया गया था।
 
'''बांके बिहारी मंदिर''' [[मथुरा|मथुरा ज़िले]] के [[वृंदावन|वृंदावनधाम]] में रमण रेती पर स्थित है। यह [[भारत]] के प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। 'बांके बिहारी' [[कृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]] का ही एक रूप है, जो इसमें प्रदर्शित किया गया है। श्रीधाम [[वृन्दावन]] एक ऐसी पावन भूमि है, जिस भूमि पर आने मात्र से ही सभी पापों का नाश हो जाता है। ऐसा आख़िर कौन व्यक्ति होगा, जो इस पवित्र भूमि पर आना नहीं चाहेगा तथा श्री बाँके बिहारी जी के दर्शन कर अपने को कृतार्थ करना नहीं चाहेगा। यह मन्दिर श्री वृन्दावन धाम के एक सुन्दर इलाके में स्थित है। कहा जाता है कि इस मन्दिर का निर्माण [[स्वामी हरिदास|स्वामी श्री हरिदास जी]] के वंशजोंं के सामूहिक प्रयास से संवत 1921 के लगभग किया गया था।
==संक्षिप्त इतिहास==
 
मन्दिर निर्माण के शुरुआत में किसी दान-दाता का धन इसमें नहीं लगाया गया। श्रीहरिदास स्वामी विषय उदासीन [[वैष्णव]] थे। उनके भजन-कीर्तन से प्रसन्न हो [[निधिवन वृन्दावन|निधिवन]] से श्री बाँके बिहारी जी प्रकट हुये थे। स्वामी हरिदास जी का जन्म संवत 1536 में [[भाद्रपद]] महीने के [[शुक्ल पक्ष]] में [[अष्टमी]] के [[दिन]] वृन्दावन के निकट राजापुर नामक गाँव में हुआ था। इनके आराध्यदेव श्याम-सलोनी सूरत वाले श्री बाँके बिहारी जी थे। इनके [[पिता]] का नाम गंगाधर एवं [[माता]] का नाम श्रीमती चित्रा देवी था। हरिदास जी, स्वामी आशुधीर देव जी के शिष्य थे। इन्हें देखते ही आशुधीर देवजी जान गये थे कि ये [[ललिता सखी|सखी ललिताजी]] के [[अवतार]] हैं तथा '[[राधाष्टमी]]' के दिन [[भक्ति]] प्रदायनी [[राधा|श्रीराधा जी]] के मंगल-महोत्सव का दर्शन लाभ हेतु ही यहाँ पधारे हैंं। स्वामी हरिदास जी को रसनिधि सखी का अवतार माना गया है। ये बचपन से ही संसार से ऊबे रहते थे। किशोरावस्था में इन्होंने आशुधीर जी से युगल मन्त्र दीक्षा ली तथा [[यमुना]] समीप निकुंज में एकान्त स्थान पर जाकर ध्यान-मग्न रहने लगे। जब ये 25 [[वर्ष]] के हुए तब इन्होंने अपने गुरु जी से विरक्तावेष प्राप्त किया एवं संसार से दूर होकर निकुंज बिहारी जी के नित्य लीलाओं का चिन्तन करने में रह गये। निकुंज वन में ही स्वामी हरिदास जी को बिहारी जी की मूर्ति निकालने का स्वप्नादेश हुआ था। तब उनकी आज्ञानुसार मनोहर श्यामवर्ण छवि वाले श्रीविग्रह को धरा की गोद से बाहर निकाला गया। यही सुन्दर मूर्ति जग में श्री बाँके बिहारी जी के नाम से विख्यात हुई। इस मूर्ति को [[मार्गशीर्ष]], शुक्ला की [[पंचमी]] [[तिथि]] को निकाला गया था। अतः प्राकट्य तिथि को हम 'विहार पंचमी' के रूप में बड़े ही उल्लास के साथ मानते हैं।
 
  
श्री बाँके बिहारी जी [[निधिवन वृन्दावन|निधिवन]] में ही बहुत समय तक स्वामी जी द्वारा सेवित होते रहे थे। फिर जब मन्दिर का निर्माण कार्य सम्पन्न हो गया, तब उनको वहाँ लाकर स्थापित कर दिया गया। सनाढ्य वंश परम्परागत श्रीकृष्ण यति जी, बिहारी जी के भोग एवं अन्य सेवा व्यवस्था सम्भाले रहे। फिर इन्होंने संवत 1975 में हरगुलाल सेठ जी को श्री बिहारी जी की सेवा व्यवस्था सम्भालने हेतु नियुक्त किया। तब इस सेठ ने वेरी, कलकत्ता, रोहतक, इत्यादि स्थानों पर श्री बाँके बिहारी ट्रस्टों की स्थापना की। इसके अलावा अन्य [[भक्त|भक्तों]] का सहयोग भी इसमें काफ़ी सहायता प्रदान कर रहा है। आनन्द का विषय है कि जब काला पहाड़ के उत्पात की आशंका से अनेकों विग्रह स्थानान्तरित हुए। परन्तु श्री बाँके बिहारी जी यहाँ से स्थानान्तरित नहीं हुए। आज भी उनकी यहाँ प्रेम सहित पूजा चल रही है। कालान्तर में स्वामी हरिदास जी के उपासना पद्धति में परिवर्तन लाकर एक नये सम्प्रदाय, 'निम्बार्क संप्रदाय' से स्वतंत्र होकर 'सखीभाव संप्रदाय' बना। इसी पद्धति के अनुसार [[वृन्दावन]] के सभी मन्दिरों में सेवा एवं महोत्सव आदि मनाये जाते हैं। श्री बाँके बिहारी जी मन्दिर में केवल [[शरद पूर्णिमा]] के दिन श्री श्री बाँके बिहारी जी वंशीधारण करते हैं। केवल 'हरियाली तीज' के दिन ही ठाकुर जी झूले पर बैठते हैं एवं [[कृष्ण जन्माष्टमी|जन्माष्टमी]] के दिन ही केवल उनकी मंगला-आरती होती है, जिसके दर्शन सौभाग्यशाली व्यक्ति को ही प्राप्त होते हैं और चरण दर्शन केवल '[[अक्षय तृतीया]]' के दिन ही होता है। इन चरण-कमलों का जो दर्शन करता है, उसका तो बेड़ा ही पार लग जाता है।
 
==कथा प्रसंग==
 
*[[स्वामी हरिदास]] [[संगीत]] के प्रसिद्ध गायक एवं तानसेन के गुरु थे। एक दिन प्रातःकाल स्वामी जी देखने लगे कि उनके बिस्तर पर कोई रजाई ओढ़कर सो रहा है।
 
[[चित्र:Banke-Bihari-Temple-Vrindavan.jpg|बांके बिहारी जी मन्दिर, [[वृन्दावन]]<br />Banke Bihari Temple, Vrindavan|thumb|250px|left]]
 
यह देखकर स्वामी जी बोले- "अरे मेरे बिस्तर पर कौन सो रहा है।" वहाँ श्रीबिहारी जी स्वयं सो रहे थे। शब्द सुनते ही बिहारी जी निकल भागे, किन्तु वे अपने चुड़ा एवं वंशी, को विस्तर पर रखकर चले गये। स्वामी जी को वृद्ध अवस्था में दृष्टि जीर्ण होने के कारण कुछ नज़र नहीं आया। इसके पश्चात श्री बाँके बिहारी जी मन्दिर के पुजारी ने जब मन्दिर के कपाट खोले तो उन्हें श्री बाँके बिहारी जी के पलने में चुड़ा एवं वंशी नज़र नहीं आयी। किन्तु मन्दिर का दरवाज़ा बन्द था। आश्चर्यचकित होकर पुजारी जी निधिवन में स्वामी जी के पास आये एवं स्वामी जी को सभी बातें बतायी। स्वामी जी बोले कि प्रातःकाल कोई मेरे पंलग पर सोया हुआ था। वो जाते वक़्त कुछ छोड़ गया है। तब पुजारी जी ने प्रत्यक्ष देखा कि पंलग पर श्री बाँके बिहारी जी की चुड़ा-वंशी विराजमान हैं। इससे प्रमाणित होता है कि श्री बाँके बिहारी जी रात को रास करने के लिए निधिवन जाते हैं। इसी कारण से प्रातः श्री बिहारी जी की मंगला-आरती नहीं होती है। कारण, रात्रि में रास करके यहाँ बिहारी जी आते हैं। अतः प्रातः शयन में बाधा डालकर उनकी आरती करना अपराध है।
 
 
*स्वामी हरिदास जी के दर्शन प्राप्त करने के लिए अनेकों सम्राट यहाँ आते थे। एक बार दिल्ली के सम्राट अकबर, स्वामी जी के दर्शन हेतु यहाँ आये थे। ठाकुर जी के दर्शन प्रातः 9 बजे से दोपहर 12 बजे तक एवं सायं 6 बजे से रात्रि 9 बजे तक होते हैं। विशेष तिथि उपलक्ष्यानुसार समय के परिवर्तन कर दिया जाता है। श्री बाँके बिहारी जी के दर्शन के सम्बन्ध में अनेकों कहानियाँ प्रचलित हैं, जैसे- "एक बार एक भक्तिमती ने अपने [[पति]] को बहुत अनुनय-विनय के पश्चात [[वृन्दावन]] जाने के लिए राजी किया। दोनों वृन्दावन आकर श्री बाँके बिहारी जी के दर्शन करने लगे। कुछ दिन श्री बिहारी जी के दर्शन करने के पश्चात उसके पति ने जब स्वगृह वापस लौटने कि चेष्टा की तो भक्तिमति ने श्री बिहारी जी दर्शन लाभ से वंचित होना पड़ेगा, ऐसा सोचकर वो रोने लगी। संसार बंधन के लिए स्वगृह जायेंगे, इसलिए वो श्री बिहारी जी के निकट रोते-रोते [[प्रार्थना]] करने लगी कि "हे प्रभु में घर जा रही हूँ, किन्तु तुम चिरकाल मेरे ही पास निवास करना।" ऐसी प्रार्थना करने के पश्चात वे दोनों रेलवे स्टेशन की ओर घोड़ा गाड़ी में बैठकर चल दिये। उस समय श्री बाँके बिहारी जी एक गोप बालक का रूप धारण कर घोड़ा गाड़ी के पीछे आकर उनको साथ लेकर ले जाने के लिये भक्तिमति से प्रार्थना करने लगे। इधर पुजारी ने मंदिर में ठाकुर जी को न देखकर भक्तिमति के प्रेमयुक्त घटना को जान लिया एवं तत्काल वे घोड़ा गाड़ी के पीछे दौड़े। गाड़ी में बालक रूपी श्रीबाँकेबिहारी जी से प्रार्थना करने लगे। दोनों में ऐसा वार्तालाप चलते समय वो बालक उनके मध्य से गायब हो गया। तब पुजारी जी मन्दिर लौटकर आये और पुन: श्रीबाँकेबिहारी जी के दर्शन करने लगे। इधर भक्त तथा भक्तिमति श्री बाँके बिहारी जी की स्वयं कृपा जानकर दोनों ने संसार का गमन त्याग कर श्री बाँके बिहारी जी के चरणों में अपने जीवन को समर्पित कर दिया। ऐसे ही अनेकों कारण से श्री बाँके बिहारी जी के झलक दर्शन अर्थात झाँकी दर्शन होते हैं।
 
==झाँकी का अर्थ==
 
श्री बिहारी जी मन्दिर के सामने के दरवाज़े पर एक पर्दा लगा रहता है और वह पर्दा एक दो मिनट के अंतराल पर बन्द एवं खोला जाता है। इस विषय में यह किंवदंती है कि- "एक बार एक भक्त देखता रहा कि उसकी भक्ति के वशीभूत होकर श्री बाँके बिहारी जी भाग गये। पुजारी जी ने जब मन्दिर की कपाट खोला तो उन्हें श्री बाँके बिहारी जी नहीं दिखाई दिये। पता चला कि वे अपने एक भक्त की गवाही देने अलीगढ़ चले गये हैं। तभी से ऐसा नियम बना दिया कि झलक दर्शन में ठाकुर जी का पर्दा खुलता एवं बन्द होता रहेगा। ऐसी ही बहुत सारी कहानियाँ प्रचलित है।
 
 
[[स्वामी हरिदास]] द्वारा [[निधिवन वृन्दावन|निधिवन]] स्थित 'विशाखा कुण्ड' से श्री बाँके बिहारी जी प्रकटित हुए थे। इस मन्दिर में [[कृष्ण]] के साथ श्रीराधा जी के विग्रह के स्थान पर बाँके बिहारी जी के बाँयी ओर राधा जी की गद्दी विराजमान है। [[वैशाख]] [[मास]] की अक्षय तृतीया के दिन श्री बाँके बिहारी के श्रीचरणों का दर्शन होता है। पहले ये निधिवन में ही विराजमान थे। बाद में वर्तमान मन्दिर में पधारे हैं। यवनों के उपद्रव के समय श्री बाँके बिहारी जी गुप्त रूप से [[वृन्दावन]] में ही रहे, बाहर नहीं गये। श्री बाँके बिहारी जी का झाँकी दर्शन विशेष रूप में होता है। यहाँ झाँकी दर्शन का कारण उनका भक्त वात्सल्य एवं रसिकता है। एक समय उनके दर्शन के लिए एक भक्त महानुभाव उपस्थित हुए। वे बहुत देर तक एक-टक से इन्हें निहारते रहे। रसिक बाँके बिहारी जी उन पर रीझ गये और उनके साथ ही उनके गाँव में चले गये। बाद में बिहारी जी के गोस्वामियों को पता लगने पर उनका पीछा किया और बहुत अनुनय-विनय कर ठाकुरजी को लौटाकर श्री मन्दिर में पधराया। इसलिए बिहारी जी के झाँकी दर्शन की व्यवस्था की गई ताकि कोई उनसे नज़र न लड़ा सके। यहाँ एक विलक्षण बात यह है कि यहाँ मंगल आरती नहीं होती। यहाँ के गोसाईयों का कहना हे कि ठाकुरजी नित्य-रात्रि में रास में थककर भोर में शयन करते हैं। उस समय इन्हें जगाना उचित नहीं है।
 
  
  

Revision as of 09:30, 26 July 2016

baanke bihari mandir
[[chitr:Banke-Bihari-Temple.jpg|baanke bihari ji mandir, vrindavan|200px|center]]
vivaran mandir nirman ke shuruat mean kisi dan-data ka dhan isamean nahian lagaya gaya. shriharidas svami vishay udasin vaishnav the. unake bhajan-kirtan se prasann ho nidhivan se shri baanke bihari ji prakat huye the.
rajy uttar pradesh
zila mathura
prasiddhi hindoo dharmik sthal
kab jaean kabhi bhi
bas adda vrindavan
yatayat bas, kar, aauto adi
kya dekhean shah ji ka mandir vrindavan, nidhivan vrindavan, kaliyadah, chiraghat vrindavan
kahaan thaharean gaist haus, dharmashala adi
kya khayean kulaiya, makhan mishri, pe de
kya kharidean baansuri, thakur ji ki poshak v shrriangar samagri
es.ti.di. kod 05664
e.ti.em lagabhag sabhi
savadhani bandaroan se savadhan rahean
sanbandhit lekh shrikrishna, govind dev mandir vrindavan, shah ji mandir, ranganath ji mandir, vrindavan, rangaji mandir, vrindavan, dvarikadhish mandir mathura darshan grishm kal-prat: 7:00 se 12:00 tak, arati- 7:45 se 8:00 ke bich, saany 5:30 se 9:30 tak

shit kal-prat: 8:45 se 1:00 tak, saany 4:30 se 8:30 tak.

pin kod 281121
any janakari yah bharat ke prachin aur prasiddh mandiroan mean se ek hai. vaishakh mas ki akshay tritiya ke din shri baanke bihari ke shricharanoan ke darshan hote haian.
adyatan‎

baanke bihari mandir mathura zile ke vriandavanadham mean raman reti par sthit hai. yah bharat ke prachin aur prasiddh mandiroan mean se ek hai. 'baanke bihari' bhagavan shrikrishna ka hi ek roop hai, jo isamean pradarshit kiya gaya hai. shridham vrindavan ek aisi pavan bhoomi hai, jis bhoomi par ane matr se hi sabhi papoan ka nash ho jata hai. aisa akhir kaun vyakti hoga, jo is pavitr bhoomi par ana nahian chahega tatha shri baanke bihari ji ke darshan kar apane ko kritarth karana nahian chahega. yah mandir shri vrindavan dham ke ek sundar ilake mean sthit hai. kaha jata hai ki is mandir ka nirman svami shri haridas ji ke vanshajoanan ke samoohik prayas se sanvat 1921 ke lagabhag kiya gaya tha.



panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh

sanbandhit lekh