राधा कुमुद मुखर्जी
राधा कुमुद मुखर्जी
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पूरा नाम | राधा कुमुद मुखर्जी |
जन्म | 1889 |
जन्म भूमि | बरहमपुर, बंगाल |
मृत्यु | 1963 |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | इतिहास, राजनीति और अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ |
विद्यालय | कोलकाता विश्वविद्यालय |
शिक्षा | पीएचडी (1915) |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म भूषण (1957) |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | 1939 से 1940 के बीच राधा कुमुद मुखर्जी ने बंगाल भू राजस्व आयोग के सदस्य के रूप में काम किया। 1952 से 1958 तक वह राज्यसभा के सदस्य थे। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
राधा कुमुद मुखर्जी (अंग्रेज़ी: Radha Kumud Mukherjee, जन्म- 1889, बरहमपुर, बंगाल; मृत्यु- 1963) इतिहास, राजनीति और अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ थे। सन 1939 से 1940 के बीच उन्होंने बंगाल भू राजस्व आयोग के सदस्य के रूप में भी काम किया। 1952 से 1958 तक राधा कुमुद मुखर्जी राज्यसभा के सदस्य थे और भारत सरकार ने उन्हें 1957 में 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया था। बड़ौदा के गायकवाड़ ने उन्हें 'इतिहास शिरोमणि' की उपाधि प्रदान की थी।
परिचय
राधा कुमुद मुखर्जी का जन्म बरहमपुर बंगाल में 1889 ईसवी में हुआ था। 1915 ईस्वी में उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। अपना शिक्षक जीवन कोलकाता के रिपन कॉलेज तथा बिशप कॉलेज से प्रारंभ किया। यहां भी अंग्रेज़ी के अध्यापक थे। बाद में काशी, मैसूर और लखनऊ विश्वविद्यालयों में प्राचीन भारतीय संस्कृति तथा इतिहास के प्रोफ़ेसर रहे।[1]
क्रियाकलाप
सन 1939 से 1940 के बीच राधा कुमुद मुखर्जी ने बंगाल भू राजस्व आयोग के सदस्य के रूप में भी काम किया। 1946 से 1947 में खाद्य एवं कृषि संगठन की वाशिंगटन में आयोजित बैठक में भी भारत के प्रतिनिधि के रूप में सम्मिलित हुए। 1952 से 1958 तक वह राज्यसभा के सदस्य थे और भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया।
रचनाएँ
विद्या के धनी डॉक्टर राधा कुमुद मुखर्जी ने डेढ़ दर्जन से अधिक ग्रंथों की रचना की। इनमें कुछ उल्लेखनीय हैं-
- 'दी फंडामेंटल यूनिटी ऑफ इंडिया'
- 'हिंदू सिविलिजेशन'
- 'हर्ष'
- 'अशोक'
- 'गुप्त एंपायर'
- 'ग्लिंपसेज ऑफ़ एंशेंट इंडिया'
- 'नेशनलिज्म इन हिंदू कल्चर'
- 'ए न्यू एप्रोच कम्युनल प्रॉब्लम'
मृत्यु
1965 ईस्वी में डॉक्टर राधा कुमुद मुखर्जी का देहांत हो गया। उनके मित्रों ने उनके सम्मान में 'राधा कुमुद भाषण माला' आरंभ की है। बड़ौदा के गायकवाड़ ने उन्हें 'इतिहास शिरोमणि' की उपाधि प्रदान की थी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 718 |
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