सरस्वती पतनतीर्थ मथुरा: Difference between revisions
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तत्र स्नात्वा नरो देवि ! अवर्णोऽपि यतिर्भवेत ।। <ref>आदि वराह पुराण</ref> <br /> | [[सरस्वती नदी|सरस्वती]] नदी इसी स्थान पर [[यमुना नदी|यमुना]] में मिलती थी । सरस्वती नदी का दूसरा नाम श्रीकृष्णगंगा होने के कारण इसे कृष्णगंगा घाट भी कहते हैं। । समीप ही दाहिनी ओर गौ घाट या [[सोमतीर्थ]] है । इस घाट का सम्बन्ध श्री कृष्ण–द्वैपायन [[वेदव्यास]] से है । यहीं पास ही यमुना के एक द्वीप में महर्षि [[पराशर]] और [[मत्स्यगन्धा सरस्वती]] से [[व्यास]] का जन्म हुआ था । कहा जाता है । कि देवर्षि [[नारद]] के उपदेशों के श्रवणकर भक्तियोग के द्वारा पूर्णब्रह्म श्री [[कृष्ण]] की [[ब्रज]], [[मथुरा]] और [[द्वारका]] की सारी लीलाओं का दर्शनकर यहीं पर श्रीव्यासदेव ने परमहंस संहिता [[भागवत पुराण|श्रीमद्भागवत]] की रचना की थी। ठीक ही है, इस मधुरातिमधुर ब्रजधाम में आराधना किये बिना श्रीकृष्ण की मधुरातिमधुर लीलाओं का दर्शन एवं वर्णन कैसे सम्भव हो सकता है। बहुत से विद्वत् सारग्राही भक्तों का ऐसा ही अभिमत है। यहाँ स्नान करने पर मनुष्य सब प्रकार से पापों से मुक्त होकर भगवद् प्रेम प्राप्त करते हैं। निम्न जाति के व्यक्ति भी यहाँ स्नान करने पर परमहंस जाति अर्थात् परम भक्त हो जाते हैं। | ||
[[सरस्वती नदी|सरस्वती]] नदी इसी स्थान पर [[यमुना]] में मिलती थी । सरस्वती नदी का दूसरा नाम श्रीकृष्णगंगा होने के कारण इसे कृष्णगंगा घाट भी कहते | {{प्रचार}} | ||
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Latest revision as of 10:25, 14 June 2011
सरस्वत्याञ्च पतनं सर्वपापहरं शुभम् ।
तत्र स्नात्वा नरो देवि ! अवर्णोऽपि यतिर्भवेत ।। [1]
सरस्वती नदी इसी स्थान पर यमुना में मिलती थी । सरस्वती नदी का दूसरा नाम श्रीकृष्णगंगा होने के कारण इसे कृष्णगंगा घाट भी कहते हैं। । समीप ही दाहिनी ओर गौ घाट या सोमतीर्थ है । इस घाट का सम्बन्ध श्री कृष्ण–द्वैपायन वेदव्यास से है । यहीं पास ही यमुना के एक द्वीप में महर्षि पराशर और मत्स्यगन्धा सरस्वती से व्यास का जन्म हुआ था । कहा जाता है । कि देवर्षि नारद के उपदेशों के श्रवणकर भक्तियोग के द्वारा पूर्णब्रह्म श्री कृष्ण की ब्रज, मथुरा और द्वारका की सारी लीलाओं का दर्शनकर यहीं पर श्रीव्यासदेव ने परमहंस संहिता श्रीमद्भागवत की रचना की थी। ठीक ही है, इस मधुरातिमधुर ब्रजधाम में आराधना किये बिना श्रीकृष्ण की मधुरातिमधुर लीलाओं का दर्शन एवं वर्णन कैसे सम्भव हो सकता है। बहुत से विद्वत् सारग्राही भक्तों का ऐसा ही अभिमत है। यहाँ स्नान करने पर मनुष्य सब प्रकार से पापों से मुक्त होकर भगवद् प्रेम प्राप्त करते हैं। निम्न जाति के व्यक्ति भी यहाँ स्नान करने पर परमहंस जाति अर्थात् परम भक्त हो जाते हैं।
टीका-टिपण्णी
- ↑ आदि वराह पुराण