भरत (ऋषभदेव पुत्र): Difference between revisions
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'''भरत''' [[ऋषभदेव]] के पुत्र थे जो बहुत धार्मिक थे। उनका विवाह विश्वरूप की कन्या पंचजनी से हुआ था। | |||
*भरत के समय से ही अजनाभवर्ष नामक प्रदेश भारत कहलाने लगा। राज्य-कार्य अपने पुत्रों को सौंपकर वे पुलहाश्रम में रहकर तपस्या करने लगे। एक दिन वे नदी में स्नान कर रहे थे। वहाँ एक गर्भवती हिरणी भी थी। शेर की दहाड़ सुनकर मृगी का नदी में गर्भपात हो गया और वह किसी गुफ़ा में छिपकर मर गयी। भरत ने नदी में बहते असहाय मृगशावक को पालकर बड़ा किया। उसके मोह से वे इतने आवृत्त हो गये कि अगले जन्म में मृग ही बने। मृग के प्रेम ने उनके वैराग्य मार्ग में व्याघात उत्पन्न किया था, किन्तु मृग के रूप में भी वे भगवत-भक्ति में लगे रहे तथा अपनी माँ को छोड़कर पुलहाश्रम में पहुँच गये। भरत ने अगला जन्म एक ब्राह्मण के घर में लिया। उन्हें अपने भूतपूर्व जन्म निरंतर याद रहे। ब्राह्मण उन्हें पढ़ाने का प्रयत्न करते-करते मर गया किन्तु भरत की अध्ययन में रुचि नहीं थी। | ==धार्मिक मान्यताएँ== | ||
*पिता के न रहने पर भाई उसे मूर्ख समझकर उसकी उपेक्षा करते थे। एक बार एक डाकू भद्रकाली के सम्मुख मनुष्य-बलि देना चाहता था। उसके सेवक इस निरुद्देश्य घूमते ब्राह्मण पुत्र भरत को पकड़कर ले गये। भद्रकाली ने इस अनाचार से कुपित होकर विकराल रूप धारण कर लिया। उसने अपनी खड्ग से उन सारे चोर-डाकुओं के सिर उड़ा दिये तथा उनके रुधिर का आसव की तरह पान करने लगी। तदनंतर उस वन में भरत अकेले रह गये। उधर से राजा रहूगण की सवारी निकली। राजा के पास कहारों की कमी थी। उसने भरत को कहार की तरह पालकी उठाने के लिए कहा। भरत पालकी उठाकर चलने लगे तो अनभ्यस्त होने के नाते तथा मार्ग भली भांति देखने के प्रयास में डोली के शेष कहारों का साथ दे पाना कठिन हो गया। राजा की पालकी में झटके लगने लगे। उसने कारण जानकर भरत को डाँटा। | *भरत के समय से ही अजनाभवर्ष नामक प्रदेश [[भारत]] कहलाने लगा। राज्य-कार्य अपने पुत्रों को सौंपकर वे पुलहाश्रम में रहकर तपस्या करने लगे। एक दिन वे नदी में स्नान कर रहे थे। वहाँ एक गर्भवती हिरणी भी थी। शेर की दहाड़ सुनकर मृगी का नदी में गर्भपात हो गया और वह किसी गुफ़ा में छिपकर मर गयी। भरत ने नदी में बहते असहाय मृगशावक को पालकर बड़ा किया। उसके मोह से वे इतने आवृत्त हो गये कि अगले जन्म में मृग ही बने। मृग के प्रेम ने उनके वैराग्य मार्ग में व्याघात उत्पन्न किया था, किन्तु मृग के रूप में भी वे भगवत-भक्ति में लगे रहे तथा अपनी माँ को छोड़कर पुलहाश्रम में पहुँच गये। भरत ने अगला जन्म एक ब्राह्मण के घर में लिया। उन्हें अपने भूतपूर्व जन्म निरंतर याद रहे। ब्राह्मण उन्हें पढ़ाने का प्रयत्न करते-करते मर गया किन्तु भरत की अध्ययन में रुचि नहीं थी। | ||
*पिता के न रहने पर भाई उसे मूर्ख समझकर उसकी उपेक्षा करते थे। एक बार एक डाकू भद्रकाली के सम्मुख मनुष्य-बलि देना चाहता था। उसके सेवक इस निरुद्देश्य घूमते ब्राह्मण पुत्र भरत को पकड़कर ले गये। भद्रकाली ने इस अनाचार से कुपित होकर विकराल रूप धारण कर लिया। उसने अपनी [[खड्ग]] से उन सारे चोर-डाकुओं के सिर उड़ा दिये तथा उनके रुधिर का आसव की तरह पान करने लगी। तदनंतर उस वन में भरत अकेले रह गये। उधर से राजा रहूगण की सवारी निकली। राजा के पास कहारों की कमी थी। उसने भरत को कहार की तरह पालकी उठाने के लिए कहा। भरत पालकी उठाकर चलने लगे तो अनभ्यस्त होने के नाते तथा मार्ग भली भांति देखने के प्रयास में डोली के शेष कहारों का साथ दे पाना कठिन हो गया। राजा की पालकी में झटके लगने लगे। उसने कारण जानकर भरत को डाँटा। | |||
*भरत ने उसके उत्तर में अत्यन्त शालीनता से राजा को उपदेश दिया। | *भरत ने उसके उत्तर में अत्यन्त शालीनता से राजा को उपदेश दिया। | ||
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चित्र:Disamb2.jpg भरत | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- भरत (बहुविकल्पी) |
भरत ऋषभदेव के पुत्र थे जो बहुत धार्मिक थे। उनका विवाह विश्वरूप की कन्या पंचजनी से हुआ था।
धार्मिक मान्यताएँ
- भरत के समय से ही अजनाभवर्ष नामक प्रदेश भारत कहलाने लगा। राज्य-कार्य अपने पुत्रों को सौंपकर वे पुलहाश्रम में रहकर तपस्या करने लगे। एक दिन वे नदी में स्नान कर रहे थे। वहाँ एक गर्भवती हिरणी भी थी। शेर की दहाड़ सुनकर मृगी का नदी में गर्भपात हो गया और वह किसी गुफ़ा में छिपकर मर गयी। भरत ने नदी में बहते असहाय मृगशावक को पालकर बड़ा किया। उसके मोह से वे इतने आवृत्त हो गये कि अगले जन्म में मृग ही बने। मृग के प्रेम ने उनके वैराग्य मार्ग में व्याघात उत्पन्न किया था, किन्तु मृग के रूप में भी वे भगवत-भक्ति में लगे रहे तथा अपनी माँ को छोड़कर पुलहाश्रम में पहुँच गये। भरत ने अगला जन्म एक ब्राह्मण के घर में लिया। उन्हें अपने भूतपूर्व जन्म निरंतर याद रहे। ब्राह्मण उन्हें पढ़ाने का प्रयत्न करते-करते मर गया किन्तु भरत की अध्ययन में रुचि नहीं थी।
- पिता के न रहने पर भाई उसे मूर्ख समझकर उसकी उपेक्षा करते थे। एक बार एक डाकू भद्रकाली के सम्मुख मनुष्य-बलि देना चाहता था। उसके सेवक इस निरुद्देश्य घूमते ब्राह्मण पुत्र भरत को पकड़कर ले गये। भद्रकाली ने इस अनाचार से कुपित होकर विकराल रूप धारण कर लिया। उसने अपनी खड्ग से उन सारे चोर-डाकुओं के सिर उड़ा दिये तथा उनके रुधिर का आसव की तरह पान करने लगी। तदनंतर उस वन में भरत अकेले रह गये। उधर से राजा रहूगण की सवारी निकली। राजा के पास कहारों की कमी थी। उसने भरत को कहार की तरह पालकी उठाने के लिए कहा। भरत पालकी उठाकर चलने लगे तो अनभ्यस्त होने के नाते तथा मार्ग भली भांति देखने के प्रयास में डोली के शेष कहारों का साथ दे पाना कठिन हो गया। राजा की पालकी में झटके लगने लगे। उसने कारण जानकर भरत को डाँटा।
- भरत ने उसके उत्तर में अत्यन्त शालीनता से राजा को उपदेश दिया।
- राजा ने ब्राह्मण-पुत्र के यथार्थ रूप को जाना तो अत्यन्त लज्जित हुआ।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीमद्भागवत पुराण, पंचम स्कन्ध, 7-26, विष्णु पुराण, 2.3-14
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