एक समय सब सहित समाजा: Difference between revisions
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सकल सुकृत मूरति नरनाहू। राम सुजसु सुनि अतिहि उछाहू॥1॥</poem> | सकल सुकृत मूरति नरनाहू। राम सुजसु सुनि अतिहि उछाहू॥1॥</poem> | ||
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Latest revision as of 10:19, 17 May 2016
एक समय सब सहित समाजा
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
एक समय सब सहित समाजा। राजसभाँ रघुराजु बिराजा॥ |
- भावार्थ
सबके हृदय में ऐसी अभिलाषा है और सब महादेवजी को मनाकर (प्रार्थना करके) कहते हैं कि राजा अपने जीते जी श्री रामचन्द्रजी को युवराज पद दे दें॥1॥
left|30px|link=सब कें उर अभिलाषु|पीछे जाएँ | एक समय सब सहित समाजा | right|30px|link=नृप सब रहहिं कृपा अभिलाषें|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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